ज्योतिष शास्त्र में शुभ और अशुभ योगों के बारे में बताया गया है। इन योगों में से एक योग है श्रापित योग,जिसे श्रापित दोष भी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है, कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसकी कुण्डली में मौजूद शुभ योगों का प्रभाव कम हो जाता है। जिससे व्यक्ति को जीवन में कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
श्रापित शब्द का अर्थ है किसी को श्रापदेना। ऐसा कहा जाता है कि श्राप योग तब बनता है, जब शनि और राहु कुंडली के एक घर में एक साथ होते है। ज्योतिष यह भी मानता हैं, कि राहु पर शनि के प्रभाव के परिणाम स्वरूप श्राप योग होता है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य को अशुभ ग्रह बताया गया है। इन अशुभ ग्रहों में शनि और राहु की मौजूदगी एक राशि में होने पर श्रापित योग का निर्माण करती है। ये दोनों ही ग्रह अशुभ फल देते हैं, इसलिए इन दोनों ग्रहों के मेल से बनने वाले योग को श्रापित योग कहा जाता है।
श्राप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होनाहोता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है, उनकी कुंडली में जितने भी शुभ योग होते हैं, वह प्रभावहीन हो जाते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों तथा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
कुंडली में श्रापित योग के होने का कारण भी पूर्व जन्म के कर्मों का फल माना जाता है।ज्योतिषियों का मानना हैं, कि यह योग अत्यंत अशुभ फलदायी होता है। इस योग का फल व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार भोगना पड़ता है।