नाड़ी दोष क्या होता है ?
ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं और नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें आद्य (आदि), मध्य और अन्त्य नाड़ी के नाम से जाना जाता है।
कुंडली मिलान के वक्त बनने वाले दोषों में से नाड़ीदोष को सबसे ज्यादा अशुभ दोष माना जाता है। कई वैदिक ज्योतिष यह मानते हैं, कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष के बनने से निर्धनता, संतान ना होना और वर-वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी समस्याएं हो सकती है।
ज्योतिष आचार्य कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर ऐसे लड़के और लड़की का विवाह करने से मना कर देते हैं। गुण मिलान की प्रक्रिया में आठ कूटों का मिलान किया जाता है, जिसके कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है। ये अष्टकूट हैं, वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रह मैत्री, गण, भकूट तथा नाड़ी।
गुण मिलान करते वक्त वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो, तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं।जैसे कि वर की आदि नाड़ी और वधू की नाड़ी मध्य तथा अन्त्य हो।
लेकिन यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो, तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं और इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है।
नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलग होने की प्रबल संभावना होती है। वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अन्त्य होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की संभावनाएं होती है।