ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं और नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।
कुंडली मिलान कीप्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से नाड़ी दोष को बहुत अशुभ दोष माना जाता है।वैदिक ज्योतिष यह मानता हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष के बनने से निर्धनता, संतान ना होना और वर-वधू दोनों में से किसी एक या दोनों की मृत्यु हो जाने जैसी भारी समस्याएं आ सकती है।
कितने प्रकार के होते है नाड़ी दोष?
नाड़ी दोष तीन प्रकार के होते है :-आद्य (आदि), मध्य और अन्त्य नाड़ी।
आदि नाड़ी
आदि नाड़ी में नौ नक्षत्र होते हैं, उनके नाम ये है :-अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी,हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्वाभाद्रपदा।
मध्य नाड़ी
मध्य नाड़ी में नौ नक्षत्र होते हैं, उनके नाम ये है :-भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तराभाद्रपदा।
अन्त्य नाड़ी
अन्त्य नाड़ी में नौ नक्षत्र होते हैं, उनके नाम ये है :-कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।
‘आदि दोष’ में पति की मृत्यु हो सकती है, ‘मध्य दोष’पति-पत्नी दोनों के लिए मृत्युकारक होता है और ‘अन्य दोष’ पत्नी की मृत्यु का कारक बनता है। इसलिए वैवाहिक जीवन में नाड़ी दोष का होना हर प्रकार से जीवन को दुखी बनाता है।
वाराहमिहिर के अनुसार, अगर वर-वधू की कुंडली में ‘आदि दोष’हो, तो उनका तलाक निश्चित होता है। ‘मध्य दोष’होने पर दोनों की ही मृत्यु हो सकती है।
‘अन्त्य दोष’हो, तो वैवाहिक जीवन बहुत कष्ट में गुजरता है या दोनों में किसी एक की मृत्यु हो जाती है। उनका एकाकी जीवन भी सामान्य से अधिक कष्टदायक होता है।
नारद पुराण के अनुसार, भले ही वर-वधू के अन्य गुण मिल रहे हों। लेकिन नाड़ी दोष हो, तो इसे किसी भी हाल में नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि यह वैवाहिक जीवन के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है।
ऐसे रिश्ते या तो नर्क के समान गुजरते हैं या फिर दुखद हालातों में टूट जाते हैं। यहाँ तक कि जोड़े में सेकिसी एक की मृत्यु भी हो सकती है।