ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक माना गया है इसलिए जब जन्म कुण्डली में सूर्य ग्रह, जन्म कुंडली का नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह, चन्द्र राशि से वां भाव और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक राहु- केतु या शनि से पीड़ित हो और लग्न और लग्नेश की स्थिति भी मजबूत न हो या उनका अष्टम या अष्टमेश से सम्बन्ध बनता हो तो कुंडली में पितृ दोष होता है |
कुछ का मानना है कि पितृ दोष कुंडली में तब बनता है जब हमारे पितृ हमसे नाराज होते है | जैसे पित्ररों का दाह-संस्कार सही ढंग से ना हो या उनका सही ढंग से श्राद्ध आदि ना किया जाये तो वह नाखुश होकर हमें परेशान करते हैं।
पितृ दोष की वजह से जातक को राज्य सम्बन्धी परेशानियां आती है | ऐसे जातक का उस के पिता के साथ वैचारिक मतभेद बना रहता है | समय-समय पर धन सम्बन्धी परेशानियां होती रहती है | पितृ दोष से पीड़ित जातक शारीरिक या मानसिक रूप से किसी ना किसी बीमारी से परेशान रहता है | उसे शिक्षा सम्बन्धी दिक्कतें आती है | पितृ दोष की वजह से सफ़लता जातक से कोसो दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है।
पितृ दोष किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये पूजा पाठ के जरिये इसका निवारण अवश्य करवाना चाहिए।