ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं और नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है।
जन्म नक्षत्र के आधार पर नाडियों को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें आद्य (आदि), मध्य और अन्त्य नाड़ी के नाम से जाना जाता है।
यदि किसी का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ हो तो उसकी मध्य नाड़ी होगी। इसी प्रकार अन्य सभी 27 नक्षत्रों का नाडियों में विभाजन किया गया है।
नाड़ी दोष होने पर वर-वधु में पारस्परिक विकर्षण पैदा होता है और संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है। शास्त्रों के अनुसार वर कन्या की कुंडली में नाड़ी दोषहो तो ऐसे में विवाह करना उचित नहीं समझा जाताहै।
कुंडली मिलान प्रक्रिया में गुणमिलने से बनने वाले दोषों में से नाड़ी दोष को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है।
वैदिक ज्योतिषका ऐसा मानना हैं कि कुंडली में नाड़ी दोष के बनने से निर्धन होना, संतान ना होना और वर-वधु दोनों में से एक तथा दोनों की मृत्यु होना जैसी भारी मुसीबतों का सामना करना पड़सकता है।इसीलिए ज्योतिष कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर लड़के तथा लड़की का विवाह करने से मना कर देते हैं।
यदि आपकी जन्म कुंडली में नाडी दोष है, तो आपको इस दोष से घबराने की जरूरत नहीं है। इस समस्या के निवारण के लिए आप हमें अपना नाम, जन्म का समय, जन्म तिथि और जन्म स्थान आदि जानकारी भेज सकते है। सारी जानकारी मिलने के बाद हम आपको सम्पर्क करेंगे।
जानकारी प्राप्त होने के बाद हम आपकी कुंडली का विश्लेषण करेंगे यदि आपकी कुंडली में नाडी दोष होता है, तो हम आपको इस दोष के निवारण के लिए कुछ सरल उपाय बताएगें।