महालक्ष्मी व्रत
शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी व्रत एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूरी होती है, साथ ही जीवन की हर समस्या का भी अंत हो जाता है। महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होता है है और यह व्रत सोलह दिनों तक चलते है। इस व्रत में धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में माँ लक्ष्मी के आठवें रूप यानि महालक्ष्मी के रूप का वर्णन किया गया है। इस व्रत को सोलह दिनों तक किया जाता है, लेकिन जो इंसान पूरे सोलह दिन का व्रत नहीं कर पाता है, तो वह इन सोलह दिनों में से केवल तीन दिन का व्रत कर सकते है। यह तीन दिन का व्रत सोलह दिनों के पहले, मध्य और अंत में कर सकते है।
महालक्ष्मी व्रत कब से कब तक है?
इस साल महालक्ष्मी जी का व्रत 17 सितंबर 2018 से शुरू होगा और 02 अक्टूबर 2018 को व्रत समाप्त होंगे।
पूजा विधि
- इस व्रत को करने के लिए प्रात:काल उठकर स्नानादि कार्य करके व्रत का संकल्प करें।
- पूजा के लिए सबसे पहले कलश की स्थापना करें।
- कलश स्थापना के बाद कलश पर एक कच्चा नारियल को लाल कपडे में लपेट कर उस पर रख दे।
- इसके बाद एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और उस पर महालक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करे।
- इस व्रत में अखण्ड ज्योत प्रज्जवलित करें, जो सोलह दिन तक जलती रहनी चाहिए।
- इन सोलह दिनों में माँ लक्ष्मी की पूजा नियमित रूप से सुबह और शाम की जाती है, साथ ही मेवा, मिठाई का भोग लगाएं।
- व्रत के अंतिम दिन यानी सोलहवें दिन उद्यापन के समय दो सूप या स्टील की नई थाली ले और इस थाली में सोलह श्रृंगार के सामान सोलह की संख्या में रखे, फिर दूसरे थाली से उसे ढक दें।
- अब सोलह दिये जलाए और पूजा करे, फिर श्रृंगार का सामान माँ को चढाकर उस सामान को दान कर दे।
- पूजा करने के बाद चन्द्रमा को जल चढाएं।
- माँ लक्ष्मी को भोजन में पूरी, सब्जी, रायता या खीर का भोग लगाएं।
इसके बाद दान साम्रगी वस्तु किसी ब्राह्मण को देने के साथ ही इस व्रत का समापन करें।