हिन्दू ज्योतिष में मुहूर्त का अत्याधिक महत्व है | हर व्यक्ति कोई भी शुभ काम ऐसे समय में शुरू करना चाहता है जब उसे उस कार्य का पूर्ण फल प्राप्त हो । कार्य को शुरू करने में जिस चीज़ का सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है वह है पंचक । शास्त्रों के अनुसार पंचक में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है और यदि व्यक्ति के जीवन में कोई अशुभ कार्य पंचक के समय हो जाये तो स्थिति और अधिक विचारणीय हो जाती है क्योकि कहते की पंचक के दौरान यदि कोई अशुभ कार्य हो तो उनकी पांच बार आवृत्ति होती है। उदाहरण के तौर पर पंचक का विचार खासतौर पर किसी की मृत्यु के दौरान किया जाता है। शास्त्रों में लिखा है की यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक के दौरान हो तो घर-परिवार में पांच लोगों पर संकट रहता है। इसलिए जिस व्यक्ति की मृत्यु पंचक में होती है उसके दाह संस्कार के समय पांच पुतले बनाकर साथ में उनका भी दाह कर दिया जाता है। इससे परिवार पर से पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
दरअसल ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें अंतिम के पांच नक्षत्र ख़राब माने गए हैं, ये नक्षत्र धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र चार चरणों में विभाजित है। पंचक धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण से शुरू होकर रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण तक रहता है। हर दिन एक नक्षत्र होता है इस लिहाज से धनिष्ठा से रेवती तक पांच दिन हुए। ये पांच दिन पंचक के दिन माने जाते है ।