हिन्दू धर्म में श्राद्ध को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में पितृयज्ञ या श्राद्धकर्म के लिए अश्विन माह का कृष्ण पक्ष नियुक्त किया गया है।
सूर्य का कन्या राशि में रहने वाला समय आश्विन कृष्ण पक्ष पितर पक्ष कहलाता है। पितर पक्ष के दौरान देहत्याग की तिथि पर अपने पितरों या पूर्वजों का श्राद्ध करते है,उस श्राद्ध से पितर तृप्त हो जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसी मान्यता है की इंसान की मौत के बाद उसकी आत्मा अगले शरीर में प्रवेश करने से पहले इधर-उधर भटकती रहती है।
इस विचरण के समाप्त होने पर इंसान को मोक्ष की प्राप्ति हो इसके लिए हिन्दू धर्म में पितृ पूजा करने का विधान बनाया हुआ है।
श्राद्ध करने की पूजा विधि
- सुबह उठकर स्नान करे, इसके बाद देव स्थान और पितृ स्थान को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए तथा गाय के गोबर से लीपना चाहिए।
- श्राद्ध के दिन घर की महिलाएं को शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाना चाहिए।
- ब्राह्मणों को न्योता देकर अपने घर बुलाएं और निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोने चाहिए।
- अब ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाना चाहिए।
- हमेशा एक सुयोग्य पंडित द्वारा ही पिण्ड दान या तर्पण करवाना चाहिए।
- ऐसा माना जाता है की उचित मंत्रों और योग्य ब्राह्मण की देखरेख में किया गया श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ होता है।
- पितरों के निमित्त अग्नि में दही, गाय का दूध, घी एवं खीर आदि अर्पण करें।
- ब्राह्मण भोजन ग्रहण करने से पहले पंचबलि यानी कौए, देवता,गाय, कुत्ते और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।
- दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करना चाहिए। एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराना उत्तम माना जाता है।
- तर्पण आदि कार्य करने के बाद ब्राह्मण को थाली या पत्ते पर भोजन परोसना चाहिए।
- भोजन के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करनी चाहिए।
- श्राद्ध के दिन गरीबों और ब्राह्मणों को दान अवश्य करना चाहिए। वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी, गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, नमक आदि का दान अवश्य करें।