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श्राद्ध क्या है ?
पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। हमारे शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन निर्धारित किए गए हैं, जिसमें व्यक्ति अपने पूर्वजों को याद करते है और उनका तर्पण कर उन्हे शांति और तृप्ति प्रदान करते है। ताकि हमें उनका आर्शीवाद और सहयोग प्राप्त हो सके।
क्यों मनाया जाता है श्राद्ध ?
ऐसा माना जाता है, जो लोग पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का तर्पण आदि नहीं कराते है उन्हें पितृदोष झेलना पड़ता है। इसलिए हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि करने का विधान बताया गया है। लेकिन अगर फिर भी किसी व्यक्ति को पितृ दोष लग जाता है, तो उससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय है पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करना। श्राद्ध करके पितृऋण से मुक्ति पाई जा सकती है।
श्राद्ध पूजा
गाय के गोबर के उपले को जलाकर, उस कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दें।
इसके नजदीक जल से भरा हुआ एक लोटा रख दें।
इस द्रव्य को अगले दिन किसी पेड़ की जड़ में डाल दें।
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ और कुशा आदि का सर्वाधिक महत्त्व होता है।
श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले खाद्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित किया जाता है।
श्राद्ध करने का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।
श्राद्ध में कई प्रकार का भोजन बनाया जाता है और पूजा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है, उसके बाद स्वयं भोजन किया जाता है।
कौवें को पितरों का रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौवें का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं।
अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
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