क्या है श्राद्ध ?
हिन्दू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद परिवार द्वारा उनका श्राद्ध करना बहुत जरूरी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण नहीं किया जाए, तो उसे पृथ्वी लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही भटकता रह जाता है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार, पितरों के नाम पर ब्राह्मणों को भोजन तथा श्रद्धापूर्वक दान ही श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों की तृप्ति की जाती है। पितरों को पिण्ड रूप में दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।
क्यों मनाये जाते है श्राद्ध ?
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि का सही दिन नहीं पता होता, वो लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन अर्पित करके याद करते हैं।
पितरों के लिए किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान को ही श्राद्ध कहते है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य के सिंह से कन्या राशि में प्रवेश करने से पितर परलोक से उतर कर अपने पुत्र-पौत्रों के साथ रहने आते हैं। शास्त्रों में श्राद्ध तीन पीढि़यों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
2018 में कब है श्राद्ध
24 सितंबर (सोमवार) पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर (मंगलवार) प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर (बुधवार) द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर (गुरुवार) तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर (शुक्रवार) चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर (शनिवार) पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर (रविवार) षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर (सोमवार) सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर (मंगलवार) अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर (बुधवार) नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर (गुरुवार) दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर (शुक्रवार) एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर (शनिवार) द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर (रविवार) त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर (सोमवार) सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या