पितृ पक्ष या श्राद्ध की पौराणिक कथा, क्यों मनाया जाता है श्राद्ध? | शिवॉलजी


pitra-paksha-or-shradh-katha

पितृ पक्ष या श्राद्ध की कथा

Shradh or pitra paksha

1 min read



श्राद्ध या पितृ पक्ष के बारे में तो हम सभी जानते है की ये क्यों मनाये जाते है। लेकिन श्राद्ध पर्व की कहानी शायद आपको पता नहीं होगी। आज हम आपको श्राद्ध की कथा बताने जा रहे है।

श्राद्ध की कथा 

पुराणों के अनुसार, जोगे तथा भोगे दो भाई थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में अत्यंत प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का घमंड था, लेकिन भोगे की पत्नी सरल हृदय की थी।

पितृ पक्ष के आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे बेकार का काम समझकर टालने लगा, लेकिन उसकी पत्नी जानती थी कि यदि ऐसा नहीं किया तो लोग बातें बनाएंगे।

साथ ही उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी अमीरी दिखाने का यह सही अवसर लगा।

अंत में वो बोली- आप मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, तो मैं सहायता के लिए भोगे की पत्नी को बुला लूंगी।

दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगे।' फिर उसने जोगे को अपने मायके न्यौता देने के लिए भेजा। दूसरे दिन उसके बुलाने पर सुबह-सवेरे ही भोगे की पत्नी आकर काम में लग गई।

उसने भोजन तैयार किया, अनेक तरह के पकवान बनाए फिर सभी काम खत्म कर अपने घर आ गई। उसे भी अपने घर पर पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।

इस मौके पर जोगे की पत्नी ने उसे नहीं रोका और ना वह रुकी। दोपहर के समय पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो उन्होंने देखा कि उसके ससुराल वाले पहले से ही भोजन पर जुटे हुए हैं।

आखिरी में वो भोगे के घर गए जहाँ पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने अगियारी की राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर पहुंच गए।

थोड़ी देर में सभी पितर एकत्र हुए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की तारीफें करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने अपनी आपबीती कही। फिर वो सोचने लगे- यदि भोगे समर्थ होता तो  उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता,लेकिन भोगे के घर में तो दो वक़्त की रोटी भी खाने को नहीं थी।

यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वो ख़ुशी में चिल्लाने लगे की भोगे के घर धन हो जाए। भोगे भी धनवान हो जाए। शाम हो गई थी और भोगे के बच्चों भी भूखे थे।

उन्होंने अपंनी मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने के लिए भोगे की पत्नी ने कहा- 'जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, जाओ उसे खोल लो और जो भी मिले, बांटकर खा लेना।'

बच्चे वहां जाते है तो देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े कर मां के पास पहुंचे और सारी बातें बताईं। आंगन में जब भोगे की पत्नी ने यह सब देखा तो वह भी हैरान हो गई।

इस तरह भोगे भी धनवान हो गया, धन पाकर वह कभी घमंडी नहीं हुआ। अगले साल का पितृ पक्ष आया। भोगे की पत्नी ने श्राद्ध के दिन छप्पन प्रकार के भोग बनाएं।

ब्राह्मणों को अपने घर बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया और दक्षिणा दी। सोने-चांदी के बर्तनों में जेठ-जेठानी को भोजन कराया। इससे पितर बहुत प्रसन्न और तृप्त हुए।



Trending Articles



Get Detailed Consultation with Acharya Gagan
Discuss regarding all your concerns with Acharyaji over the call and get complete solution for your problem.


100% Secured Payment Methods

Shivology

Associated with Major Courier Partners

Shivology

We provide Spiritual Services Worldwide

Spiritual Services in USA, Canada, UK, Germany, Australia, France & many more