न्याय के देवता के रूप में भगवान शनिदेव को जाना जाता हैं । समस्त भगवानो में शनिदेव ही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा लोग आस्था से नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ डर से करते हैं । इसका मुख्य कारण है कि शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । वह इंसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मो के अनुसार फल प्रदान करते हैं । यही वजह है की भगवान शनि को कलियुग में भी निष्पक्ष न्याय करने वाले देवता के रूप में माना जाता हैं ।
कौन है शनिदेव -
शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं । इनकी पत्नी के श्राप के कारण इनको क्रूर ग्रह माना जाता है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये गिद्ध की सवारी करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक निवास करते हैं, साथ ही मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है । माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बुरे विचार शनि तक पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है । वास्तव में शनिदेव एक बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं । यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते, कहने का तात्पर्य यदि आप बुरे कामों में लिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है । क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते ।
शनिदेव भी अपने पिता की तरह ही तेजस्वी है। यदि यह प्रसन्न हों तो मनुष्य को मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है… और कुपित हो जाएं तो सर्वनाश होते देर नहीं लगती है । सामान्य मनुष्य ही नहीं बड़े बड़े योगी, यक्ष, देव और दानव तक शनिदेव के कोप से भय खाते हैं। भक्त से प्रसन्न होने पर अच्छी किस्मत और भाग्य के साथ उनकी हर मनोकामना पूरी करके मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
शनि जन्म कथा
शनि जन्म के विषय में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार शनि देव के पिता सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया हैं । सूर्य देव का विवाह दक्ष पुत्री संज्ञा से हुआ. कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई । इस तरह कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया लेकिन संज्ञा भगवान सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं । अब सूर्य का तेज सहन कर पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था । इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली गईं. कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ ।