नवरात्री व्रत कथा हिंदी में, नवरात्री क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे की कहानी | शिवॉलजी


navratri-vrat-katha-in-hindi

नवरात्री व्रत कथा हिंदी में

Navratri 2018

1 min read



एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह माँ दुर्गा का परम भक्त था। उस ब्राह्मण की एक कन्या थी, जिसका नाम सुमति था। ब्राह्मण अपनी पुत्री के साथ नियमपूर्वक प्रतिदिन माँ दुर्गा की पूजा और यज्ञ करता था। वह अपने पिता की हर आज्ञा का पालन करती थी।

एक दिन सहेलियों के साथ खेल में व्यस्त होने के कारण सुमति माँ भगवती की पूजा के लिए समय पर घर नहीं पहुँच पाई, जब सुमति घर वापस आई तो उसने अपने पिता को क्रोध में पाया और उनसे अपनी गलती की माफी मांगी, लेकिन पिता ने क्रोध में कन्या को बोला की वो उसकी शादी किसी कुष्ट रोगी से कर देगें।

पिता की बातें सुनकर बेटी को बहुत कष्ट पहुँचा और कहने लगी कि मैं आपकी पुत्री हूँ और आपके अधीन हूँ इसलिए आप मेरा विवाह जिस किसी से कराना चाहे करा सकते हैं, लेकिन होना तो वही है जो मेरे भाग्य में लिखा है। मुझे भाग्य पर पूर्ण विश्वास है।

जो जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल मिलता हैं। मनुष्य के हाथ में केवल कर्म करना लिखा है और उसका फल देना भगवान के हाथों में होता है। अपनी कन्या के मुख से ये निर्भयपूर्ण बातें सुनकर ब्राह्मण का क्रोध बढ़ जाता है।   

ब्राह्मण क्रोध में आकर अपनी कन्या का विवाह एक कोढ़ी के साथ कर देता है। सुमति अपने पति के साथ विवाह कर चली जाती है। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन पर रात बितानी पड़ती है।

सुमति की यह दशा देखकर माता भगवती उसके द्वारा पिछले जन्म में किये गए पुण्य प्रभाव से प्रकट हुईं और सुमति से बोलती है कि ‘हे ब्राह्मणी मैं तुम पर प्रसन्न हूँ ’ तो मांगों क्या वरदान मांगती हों ?

इस पर सुमति ने माँ भगवती से पूछा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हैं ? ब्राह्मणी की यह बात सुनकर देवी कहने लगी कि मैं तुम पर तुम्हारे पूर्वजन्म के पुण्य से प्रभावित होकर प्रसन्न हूँ, तुम पूर्व जन्म में भील की पतिव्रता स्त्री थी।  

एक दिन तुम्हारे पति भील के चोरी करने के कारण सिपाहियों ने तुम दोनों को पकड़ कर, जेल में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्रि के दिनों में तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्रि व्रत का फल तुम्हें प्राप्त हुआ।

हे ब्राह्मणी, उन दिनों अनजाने में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूँ। कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृ्पा करके मेरे पति का कोढ़ दूर कर दीजिये।

माता ने कन्या की यह इच्छा शीघ्र कर दी। उसके पति का शरीर माता भगवती की कृपा से रोगहीन हो गया और तभी से नवरात्रि के व्रत का प्रारंभ हुआ।



Trending Articles



Get Detailed Consultation with Acharya Gagan
Discuss regarding all your concerns with Acharyaji over the call and get complete solution for your problem.


100% Secured Payment Methods

Shivology

Associated with Major Courier Partners

Shivology

We provide Spiritual Services Worldwide

Spiritual Services in USA, Canada, UK, Germany, Australia, France & many more