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Shree Krishna Janmashtami 2018, Puja Muhurat and Pujan Vidhi of Janmashtami | Shivology
Why We Celebrate Krishna Janmashtami om swami gagan

हम कृष्णा जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं?


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कृष्ण जन्माष्टमी


भारतीय धर्मग्रंथों में एक बात कही गयी है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा, तब-तब भगवान किसी ना किसी रूप में जन्म लेगे और संसार को उस पाप से मुक्ति दिलाएंगे। इसी तरह द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेकर धरती को कंस नामक पापी राक्षस से मुक्ति दिलाई थी। इसीलिए भगवान कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को लोग बहुत ही हर्ष व उल्लास के साथ मानते है।

 

जन्माष्टमी की विशेषता

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के लिए सृष्टि के कण-कण में बसते है।
जन्माष्टमी के त्यौहार पर विशेष रूप से दही हांडी का आयोजन किया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं में निपुर्ण माना जाता है।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यह माता देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे।
कंस के पापों का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में इस दिन पृथ्वी पर अवतार लिया था।

दिंनाक/मुहुर्त


इस साल जन्माष्टमी 2 सिंतबर 2018 को मनाई जाएगी और इसका शुभ मुहुर्त रात्रि के 23:57 से 24:43 तक है।

जन्माष्टमी से संबंधित पूजा


जन्माष्टमी के दिन विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते है।

जन्माष्टमी की कथा


स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज था । राजा उग्रसेन के पुत्र कंस ने धोखे से उनसे गद्दी छीन ली थी। उग्रसेन की एक बेटी भी थी, जिसका नाम देवकी थी। देवकी की शादी यदुवंशी सरदार वसुदेव से हुई थी। जब इनका विवाह हुआ तो कंस खुद रथ को हांकते हुए अपनी बहन को ससुराल छोड़कर आया था। उसी दौरान एक आकाशवाणी हुई, ‘हे कंस, जिस देवकी को तुम प्रेम के साथ ससुराल विदा करने जा रहे है, उस ही की आठवीं संतान तुम्हारा अंत करेगी’।
जैसे ही कंस ने यह भविष्यवाणी सुनी तो वह गुस्सा हो गया और उसने अपनी बहन को ही मारने की कोशिश की। यह सब देखकर यदुवंशी भी गुस्सा हो गए और युद्ध की स्थिति बन गई ,परन्तु वसुदेव युद्ध करना नहीं चाहते थे। उन्होंने कंस को वादा किया कि तुम्हें देवकी से डरने की जरूरत नहीं है, जैसे ही हमारी आठवीं संतान पैदा होगी, हम तुम्हें सौंप देगे।
यह बात सुनकर कंस मान गया। लेकिन कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को जेल में बंद कर दिया। साथ ही जेल के बाहर कंस ने कड़ा पहरा लगा दिया। इस दौरान देवकी ने अपनी सात संतानों को जन्म दिया परन्तु कंस ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद देवकी की आठवीं संतान यानि श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। उसी समय यशोदा ने भी एक कन्या को जन्म दिया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो उस वक्त भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने वसुदेव से कहा कि मैं ही तुम्हारे बच्चे के रूप में जन्मा हूं। भगवान विष्णु ने ही वसुदेव को सलाह दी कि तुम मुझे अभी नंदजी के घर वृंदावन छोड़कर आओ और वहां जो कन्या पैदा हुई है, उसे लाकर कंस को दे दो।
वसुदेव ने भगवान विष्णु की बात सुनी और उनके हाथों की बेड़ियां अपने आप खुल गईं। वसुदेव जी श्रीकृष्ण को लेकर यमुना नदी के रास्ते से नंदगांव पहुंचे। वहां वसुदेव ने देखा कि सारे पहरेदार सोए हुए हैं। इसके बाद वे भगवान श्रीकृष्ण को यशोदा के पास रखकर उस कन्या को मथुरा ले आए, फिर उसके बाद जब कंस को पता लगा कि देवकी ने बच्चे को जन्म दिया है, तो वह वहां पहुंचा और उस कन्या को मारने की कोशिश की। लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और आसमान से आकाशवाणी हुई, कि मुझे मारने से क्या होगा? तुम्हें मारने वाला वृंदावन में है, वह जल्द ही तुम्हें तुम्हारे पापों की सजा देगा। इसके बाद कंस ने कई बार भगवान श्रीकृष्ण को मारने की कोशिश की, परन्तु वह इसमें नाकाम रहा। जब भगवान श्री कृष्ण युवा हुए, तो उन्होंने एक दिन अपने मामा कंस का वध कर दिया।

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