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Guru Purnima 2018, Significance and Story of Guru Purnima | Shivology
When is Guru Purnima in 2018 | Guru Purnima Date 2018 om swami gagan

2018 में गुरु पूर्णिमा कब है | गुरु पूर्णिमा तिथि 2018


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गुरू पूर्णिमा

हिंदू धर्म में गुरू की महिमा अपरंपार बताई गई है। आषाढ़मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते है। ऐसा माना जाता है कि बिना गुरू के ज्ञान प्राप्त कर पाना नामुमकिन है। बिना गुरू के सांसारिक मोह-माया से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते है, इसलिए भगवान से भी ऊँचा स्थान गुरू को दिया गया है। गुरू पूर्णिमा के दिन हम अपने गुरूओं की पूजा करते है। पूरे भारत वर्ष में इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

हिन्दू ग्रंथों के मतानुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने 18 पुराणों की रचना की थी। इन्होने ही महाभारत एवं श्रीमद् भागवद् गीता की रचना की हैं। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

 

गुरू पूर्णिमा की विशेषता

गुरू को ब्रह्मा कहा गया है, क्योंकि गुरू अपने शिष्यों को शिक्षा के द्वारा एक नया जन्म देता है।

गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, बल्कि वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग दिखाने वाला मार्गदर्शक भी होता है।

गुरू मनुष्य को अंधकार से उज्जाले में ले जाने का रास्ता दिखाता है।

गुरू अपने शिष्य को आध्यात्मिक शांति, धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह के लिए ज्ञान देता है।

गुरु का आशीर्वाद व्यक्ति के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगलदायी करने वाला होता है।

संसार की सम्पूर्ण विद्याओं को गुरु की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है।

 

दिंनाक/मुहुर्त

इस साल गुरू पूर्णिमा 27 जुलाई 2018 को मनाई जाएगी। इसका शुभ मुहुर्त 26 जुलाई की रात के 23:16 पर शुरू हो रहा है और अंत 28 जुलाई को दोपहर में 01:50 पर होगा।

 

गुरू पूर्णिमा की कथा

महर्षि वेदव्यास जी ने वेदों, पुराणों, महाभारत और भागवद् गीता आदि की रचना की थी। इन्हें गुरू-शिष्य परंपरा का प्रथम गुरू माना जाता है। वह जानते थे की यदि किसी भी व्तक्ति से कुछ भी ज्ञान या सीखने को मिलता है तो वह हमारा गुरू समान हो जाता है। फिर चाहे वो कोई भी छोटा सा जीव हो, प्राणी हो या व्यक्ति क्यों ना हो। शास्त्रों में एक घटना का वर्णन आता है कि जब एक बार व्यास जी ने देखा की एक छोटी जाति का व्यक्ति पेड़ को झुकाकर उस पेड़ से नारियल तोड रहा है। वह कला व्यास जी को भी सीखनी थी लेकिन उस व्यक्ति ने अपनी कला व्यास जी को सिखाने से मना कर दिया।

एक दिन पीछा करते हुए व्यास जी उस इंसान के घर पहुंचे लेकिन वह व्यक्ति घर पर नहीं था परन्तु उसका पुत्र था। व्यास जी ने उसे पूरी बात बताई और वह व्यास जी को मंत्र देने के लिए तैयार हो गया। अगले दिन व्यास जी आए और पूरी नियम के साथ उन्होंने वो मंत्र लिया। तभी पिता ने अपने पुत्र को देख लिया और इसका कारण पूछा। पुत्र की बात को सुनकर पिता ने अपने पुत्र को कहा कि में इन्हें जानबूझ कर यह मंत्र नहीं दे रहा था क्योंकि जिस व्यक्ति से मंत्र लिया जाता है, उस व्यक्ति को गुरू के तुल्य मान लिया जाता है। हम लोग छोटी जाति और गरीब है, तो क्या व्यास जी हमारा सम्मान करेंगे?

पिता ने कहा, बेटा यदि मंत्र देने वाले को पूजनीय ना समझा जाए तो उस मंत्र का कोई फलित नहीं होता है। इसलिए तुम जाओ ओर उनकी परीक्षा लो और देखो कि वह तुम्हें गुरू समान आदर देते है कि नहीं।

पुत्र अगले दिन व्यास जी के दरबार में पहुंच गया, जहां पर व्यास जी अपने साथियों के साथ कुछ विचार कर रहे थे। व्यास जी ने जब देखा कि उनके गुरू आ रहे है तो वह दौडकर गए और अपने गुरू का नियम अनुसार मान-सम्मान किया। यह देखकर वह व्यक्ति बहुत प्रसन्न हुआ। तभी से यह गुरू शिष्य की परंपरा शुरू हुई और इसीलिए व्यास जी को सबसे पहला गुरू माना जाता है।

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