भाद्रपद पूर्णिमा
हिंदू धर्म में पूर्णिमा का अपना ही महत्व होता है। लेकिन भाद्रपद पूर्णिमा का खास महत्व है। इसके खास होने के पीछे का कारण यह है कि इस पूर्णिमा से श्राद्धपक्ष आरंभ हो जाता है और जो आश्विन महीने तक चलता है। भाद्रपद महीने में पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा, व्रत करना और साथ ही इनकी कथा सुनना बहुत शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को ही सत्यनारायण कहा जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा की विशेषता
भगवान सत्यनारायण की पूजा और व्रत करने से इंसान के सारे कष्ट दूर हो जाते है।
इनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि होती है।
इस दिन स्नान और दान करने से मनुष्य को लाभ प्राप्त होता है।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन वस्त्र, अन्न, गुड और घी से बनी चीजों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण की कथा करवाना और सुनना बहुत फलदायी होता है।
भाद्रपद पूर्णिमा कब है?
इस साल भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 24 सितंबर 2018 के दिन 07:18 को होगा और इसका अंत 25 सितंबर 2018 को 08:22 मिनट पर होगा।
भाद्रपद पूर्णिमा से संबंधित पूजा
इसमें भगवान विष्णु रूपी सत्यनारायण की पूजा की जाती है।
भाद्रपद पूर्णिमा की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक समय की बात है कि नैमिषारण्य तीर्थ पर शौनकादिक अट्ठासी हजार ऋषियों ने पुराणवेता महर्षि श्रीसूत जी से पूछा की, हे महर्षि इस कलियुग में बिना वेद, बिना विद्या के प्राणियों का उद्धार कैसे होगा? क्या इसका कोई सरल उपाय है जिससे उन्हें इच्छा अनुसार फल की प्राप्ति हो सके।
इस पर महर्षि सूत ने कहा की, हे ऋषियों ऐसा ही प्रश्न एक बार नारद जी ने भगवान विष्णु से किया था। तब स्वयं श्री विष्णु ने नारद जी को जो विधि बताई थी उसी को मैं दोहरा रहा हूं। भगवान विष्णु ने नारद को बताया था कि इस संसार में लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुख-समृद्धि एवं अंत में परमधाम में जाने के लिये एक ही मार्ग है और वह है सत्यनारायण व्रत अर्थात सत्य का आचरण, सत्य के प्रति अपनी निष्ठा, सत्य के प्रति आग्रह। सत्य ईश्वर का ही रुप है और उसी रूप का नाम सत्य है। सत्य का पालन करते हुए ईश्वर की आराधना करना ही उसकी पूजा करना है।
इसके महत्व को स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक कथा सुनाई कि एक शतानंद नाम के दीन ब्राह्मण थे, जो भिक्षा मांगकर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन सत्य के प्रति निष्ठावान भी थे। सदा सत्य का आचरण करते रहे और व्रत का पालन करते हुए उन्होंने भगवान सत्यनारायण की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। जिसके बाद इस लोक में सुख का भोग करते हुए अंतिम समय में उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया।
भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिये और हमें सत्य का पालन करते हुए व्रत करना चाहिये। यदि हम भगवान सत्यनारायण की पूजा नहीं करते तो उसकी अवहेलना कभी नहीं करनी चाहिये और दूसरों द्वारा की जा रही पूजा का कभी मजाक नहीं उड़ाना चाहिये और श्रद्धा भाव से प्रसाद ग्रहण करना चाहिये।