पद्मिनी एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियाँ आती है और जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढकर 26 हो जाती है। मलमास जिसे अधिकमास और पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस मास में दो एकादशी अधिक आती है जिसमें अत्यंत पुण्य दायिनी पद्मिनी एकादशी भी एक है। यह एकादशी हर साल नहीं आती है। जिस साल अधिकमास लगता है, उसी साल यह एकादशी आती है।
पद्मिनी एकादशी क्या है ?
मलमास में पुण्य देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इस व्रत को करने वाला मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। यह एकादशी सिर्फ अधिकमास के ज्येष्ठ में आती है। पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है और साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा होती है।
पद्मिनी एकादशी व्रत की विशेषता
इस व्रत को करने से मनुष्य को अपार लाभ प्राप्त होता है।
पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से धन और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है । साथ ही शत्रुओं का नाश होता है।
निसंतान दंपतियों को पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
इस अधिकमास के महीने में भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है। साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पाप भी नष्ट हो जाते है।
पद्मिनी एकादशी तीन साल में एक बार आती है, तो इसका महत्व ओर अधिक बढ जाता है।
दिनांक
पद्मिनी एकादशी साल 2020 में 27 सितंबर को मनाई जाएगी।
पद्मिनी एकादशी की कथा
प्राचीन समय में एक पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। कहने को राजा की कई रानियां थी, परंतु राजा को एक भी संतान नहीं थी। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद भी दुखी रहते थे। राजा हमेशा यही सोचते थे कि उनके जाने के बाद उनका राज-पाट कौन संभालेगा। संतान प्राप्ति की कामना लिए राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने चल पड़े। हज़ारों वर्ष तपस्या करने के बाद भी राजा के हाथ सफलता ना लगी। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मलमास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। तब रानी ने देवी अनुसूया के बताए हुए पद्मिनी एकादशी के व्रत को विधि-विधान के अनुसार किया। व्रत के समाप्त होने पर भगवान प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझे पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। राजा ने भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा की, आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें, जो सर्वगुण सम्पन्न हो और जो तीनों लोकों में आदरणीय हो, सिर्फ आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान ने तथास्तु कहा और अदृश्य हो गए। कुछ समय पश्चात् रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पद्मिनी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके महत्व से अवगत कराया।