हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण और लाभकारी माना जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार साल में 24 एकादशी होती है। लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है, तो एकादशी की संख्या 26 हो जाती है। साल की 24 एकादशियों में से निर्जल एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। निर्जला एकादशी का व्रत, किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। यह व्रत सभी एकादशियों में से सबसे कठिन होता है। यह ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी व्रत के नाम से मनाया जाता है।
निर्जला एकादशी की विशेषता
निर्जला एकादशी का व्रत बिना पानी और भोजन के किया जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत करने से किसी भी तीर्थ स्थान में स्नान करने के बराबर पुण्य मिलता है।
इस दिन दान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है।
निर्जला एकादशी के दिन अन्न, जल, वस्त्र, जौ, गाय, छाता आदि दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
यह व्रत मन को संयम में करना सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
अगर कोई व्यक्ति साल के सारे एकादशी का व्रत नहीं कर पाता है और वह व्यक्ति केवल निर्जला एकादशी का व्रत करता है, तो उस व्यक्ति को सारे एकादशी का फल इस एक व्रत से ही प्राप्त हो जाता है।
दिंनाक/मुहूर्त
इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 23 जून 2018 को है। इस उपवास को खोलने का शुभ समय शाम के 06:24 से लेकर 09:14 तक का है।
निर्जला एकादशी से संबंधित पूजा
इस व्रत में भगवान विष्णुजी की पूजा की जाती है।
निर्जला एकादशी की कथा
शास्त्रों के अनुसार एक बार महर्षि व्यास जी पांडवों के यहां पधारे। सर्वज्ञ महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो महाबली भीम ने निवेदन करते हुए कहा कि आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास के बारे में कहा है। लेकिन मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह पाता हूं, मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर का भोजन करना पड़ता है। तो क्या मैं अपनी इस भूख के कारण एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?
तब महर्षि व्यास जी ने भीम की समस्या का समाधान करते हुए, उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो। इस व्रत को करने से आपको वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। इससे तुम इस लोक में सुख, यश और वैभव प्राप्त कर मोक्ष को भी प्राप्त करोगे।
इस बात से तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का व्रत विधिवत करने को तैयार हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।