हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशीका त्यौहार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति कोसभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
नरक चतुर्दशी की कहानी :
प्राचीन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस था। जिसका वर्णन पुराणों में मिलता है कि भूदेवी केबेटे नरक ने,घनघोर तपस्या करने के बाद भगवान ब्रह्मा द्वारा दिए गए एक आशीर्वाद से असीम शक्ति प्राप्त कर ली थी।
इसके बाद लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़रहा था। दानव इंसानों पर अत्याचार करते थे और महिलाओं का अपहरण कर उन्हें महल में कैद कर लेते थे।
नरकासुर के अत्याचार को सहन करने में असमर्थ, देवता भगवान श्रीकृष्ण से प्राणियों की रक्षा करने के लिए विनती करने लगे।
लेकिन राक्षस नरकासुर को एक वरदान था, कि वह केवल अपनी माँ भूदेवी के हाथों से मर सकता था। अतः श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामाकोनरकासुर के साथ युद्ध में उनका सारथी बनने को कहा। क्योंकि सत्यभामा ही भूदेवी का पुनर्जन्म थी।
युद्ध में श्रीकृष्ण ने नरकासुर को एक तीर से बेहोश कर दिया, तो सत्यभामा ने धनुष उठाकर नरकासुर को निशाना बनाते हुए तीर मारा, जिससे राक्षस नरकासुर की तुरंत मौत हो गयी।
सत्यभामा के द्वारा नरकासुर का वध, इस बात कोव्यक्त करताहै कि माता-पिता को अपने बच्चों को दंडित करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी का त्यौहार यह संदेश देता है कि समाज की भलाई हमेशा किसी व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से अधिक प्रबल होनीचाहिए।
माँ भूदेवी ने कहाकिमारे गए राक्षस नरकासुर की मृत्यु, शोक के रूप में नहीं मनाई जानी चाहिए। बल्कि इसे एक जश्न के रूप में मनाना चाहिए।
ऐसा माना जाता है,नरकासुर की मृत्यु के बाद भगवान श्रीकृष्ण के शरीर पर पड़े रक्त के छीटे को साफ़ करने के लिए उन्होंनेस्वयं तेल से स्नान किया था।
तभी से यह परंपरा चलती आ रही है कि इस दिन को लोग धूमधाम के साथ मनाते है। लोग नरक चतुर्दशी के दिन तेल लगाकर स्नान करते हैं और शाम के वक्त पूजा करने के बाद आतिशबाजी करते है।