हिंदू धर्म में दिवाली का त्यौहार पांचदिनों का होता है, जो कि धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाता है।
यह त्यौहार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। यह दिन मूल रूप से आयुर्वेद के जनक माने जाने वाले धन्वंतरि का पर्व है।
शास्त्रों में धनतेरस की पूजा करना बेहद शुभ माना गया है। धनतेरस पर शाम के समय यमराज के नाम का दीपदान किया जाता है।
पुराणों में यमराज के नाम का दीपदान करनेका बड़ा ही महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिनयमराज की पूजा और दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते है और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति प्रदान करते हैं।
यम की पूजा क्यों की जाती हैं?
प्राचीन समय में एक हिम नामक राजा के घर पुत्र ने जन्म लिया। राजा ने ज्योतिषियों तथा पंडितों से अपने पुत्र के भविष्य के बारे में पूछा,तो पंडितों ने बताया कि जब आपके पुत्र का विवाह होगा, उसके ठीक चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात सुनकर राजा बहुत दुखी हो गया। समय बितता गया और राजकुमार की शादी हो गई।
अब वोचौथा दिन भी आ गया,परन्तुराजकुमार की पत्नी को अपने भक्ति पर पूरा विश्वास था। संध्याकाल के समय राजकुमार की पत्नी ने पूरे महल को दीपों से सजा दिया। इसके बाद वह माँ लक्ष्मी का भजन करने लगी।
तभी यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ गये, तो माँ लक्ष्मी की भक्ति में लीन राजकुमार की पतिव्रता पत्नी को देखकर,वह महल में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाए। यमदूतों के वापस लौट जाने पर यमराज ने स्वयं सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश किया।
सर्प बने यमराज जब राजकुमार के कक्ष के सामने पहुँचे, तब दीपों की रोशनी और माँ लक्ष्मी की कृपा से सर्प की आँखें चौंधिया गई और सर्प बने यमराज राजकुमारी के पास पहुँच गये। राजकुमार की पत्नी के भजनों में यमराज ऐसे खोए की उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गयी।
राजकुमार की मृत्यु का समय गुजर जाने के बाद यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और राजकुमार दीर्घायु हो गया। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से यमदीप जलाने की परंपरा शुरू हुई और साथ ही इसलिए यमराज की पूजा की जाती है।