भारत में धूमधाम से मनाए जाने वाला दीपावली कात्यौहारहिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व होता है, जो दीपावली के तीन दिन पहले से ही शुरू हो जाता है।
इस त्यौहार की शुरूआत धनतेरस से होती है, जोदिवाली से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर और आयुर्वेद के देव धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
इस पर्व की सबसे बड़ी मान्यता यह है कि इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति यम के द्वारा दी जानें वाली यातनाओं से मुक्त हो जाता है।
हिन्दू धर्म में धनतेरस का त्यौहार यश, वैभव,कीर्ति और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धनतेरस की शाम को दीपदान किया जाता है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और इससे व्यक्ति की अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता हैं।
धनतेरस पर दीपक क्यों जलाते हैं ?
वैसे तो धनतेरस से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित है, लेकिन इस कहानी के बारे में हम काफी समय से सुनते आ रहे है, कि धनतेरस के दिन राजा हिम की पुत्रवधु ने अपने पति की यमराज से रक्षा की थी। तभी से इस दिन लोग अपने परिवारवालों की लंबी आयु के लिए यमराज की पूजा करते है और घर में दीया जलाते है।
शास्त्रों के अनुसार धनतेरस पर संध्याकाल के समय यमदेव की दीपदान के द्वारा पूजा की जाती है। इस दीपदान को घर की गृहलक्ष्मी के द्वारा ही किया जाना चाहिए,जिससे घर के लोग रोग,विपदाओं और दरिद्रताओं के अलावा यमराज के प्रकोप से भी बचते है।
धनतेरस पर शाम के वक्त दीया लेकर उसमें सरसों का तेल डालकर यमराज देव का ध्यान करें। इसके बाद घर के लोगों की लंबी उम्रकी प्रार्थना करें और दीया जलाएं, फिर दीपक को घर के बाहर दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके रखना चाहिए।