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धनतेरस का त्यौहार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे धनतेरस के त्यौहार के रुप में मनाया जाता है।
समुद्र मंथन से भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस का त्यौहार पूरे भारत में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन भगवान धनवन्तरी, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करने की परम्परा है। इस दिन यमदेव के नाम का दीपदान कियाजाता है।
धनतेरस से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं हैं जिनसे पता चलता है कि दीपावली से पहले धनतेरस क्यों मनाया जाता है?
धनतेरस की कथा
एक राजा था, जिसका कोई पुत्र नहीं था। लेकिन कई वर्षों की प्रतिक्षा के बाद, उसके यहाँएक पुत्र ने जन्म लिया। लेकिन जब ज्योतिषी ने उस बालक को देखकर कहा कि,जिस दिन बालक का विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी।
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा बेहद दुखीहो गया। उसके बाद राजा ने अपने पुत्र को ऐसी जगह पर भेज दिया। जहाँपर कोई भी महिला ना रहती हो, एक दिन वहाँ से एक राजकुमारी गुजरी।
राजकुमार और राजकुमारी दोनों एक दूसरे को देखते है और दोनोंको एक दूसरे से प्रेम हो जाता है। दोनोंगन्धर्व विवाह कर लेते है।
ज्योतिषी ने जो भविष्यवाणी की थी, उसी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने के लिए आ जाते है। यमदूत को देखकर राजकुमार की पत्नी रोने लगी। यह देखकर यमदूत को उसके ऊपर दया आ गई।
यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा कि इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताए। इस पर यमराज ने कहा की जो व्यक्ति कार्तिक महीने के कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मेंमेरी पूजा करके दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाएगा।उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं होगा। तभी से इस दिन घर केबाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाया जाता है।
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