हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को निर्माण तथा सृजन के देवता कहा जाता है। यही कारण है कि इन्हें देवताओं का शिल्पकार माना जाता है।
भारत के प्रमुख त्यौहारों में से विश्वकर्मा पूजा भी एक त्यौहार है, जो श्रम से जुड़े क्षेत्रों में मनाया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा को लेकर कई भांतियाँ है। कई लोग विश्वकर्मा पूजा भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाते है, तो कई लोग विश्वकर्मा पूजा दिपावली के दूसरे दिन मनाते है।
विश्वकर्माजयंती को लोग बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है।
विश्वकर्मा पूजा क्यों मानते हैं
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र “धर्म” का विवाह “वस्तु” से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम “वास्तु”रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला में परिपूर्ण थे।
“वास्तु” के विवाह के बाद उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम “विश्वकर्मा” रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बनेऔर उन्हें विश्वकर्मा के नाम से जाना जाने लगा।
विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की उन्नति होती है।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार,काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु जगह-जगह घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। वही पत्नी भी संतान ना होने के कारण काफी चिंतित रहती थी।
संतान प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहाँ जाते थे, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा, तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनो।
इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की। जिससे उन्हें धन-धान्य और पुत्र की प्राप्ति हुई और वह दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।