राधा अष्टमी
भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को राधा जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के करीब 15 दिनों बाद राधा अष्टमी आती है। ऐसा कहा जाता है कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल नहीं मिलता। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन बरसाना में बहुत ही रौनक रहती है। साथ ही विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
राधा अष्टमी की विशेषता
वेदों, पुराणों और शास्त्रों में राधाजी को कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है।
राधा जी का जाप और स्मरण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
राधा अष्टमी का व्रत करने से इंसान की हर मनोकामना पूरी होती है।
राधाष्टमी की कथा सुनने मात्र से व्रती और भक्त सुख, धन और सर्वगुण सम्पन्न बनता है।
राधा की पूजा किये बिना श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है।
मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों में इस दिन को त्यौहार के रूप में मानते है।
दिंनाक
इस साल राधाष्टमी 17 सितंबर 2018 को मनायी जाएगी।
राधाष्टमी पूजन
राधाष्टमी के दिन प्रात: काल उठकर घर की साफ-सफाई, स्नान आदि करके शुद्ध मन से व्रत का संकल्प करना चाहिए।
सबसे पहले राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं और उसके बाद उनका श्रृंगार करें।
इसके बाद राधा रानी की मूर्ति को स्थापित करें, फिर राधा जी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर धूप, दीप, फल, फूल आदि से चढाना चाहिए।
राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने के पश्चात् अंत में भोग चढाना चाहिए।
संध्या आरती करने के बाद फलाहार करना चाहिए।