अनंत चतुर्दशी
हिंदू शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि संसार को चलाने के लिए भगवान हर जगह, हर कण-कण में बसा है। दुनिया के पालनहार प्रभु की शक्तियों का बोध कराने के लिए एक कल्याणकारी व्रत है, जिसे अनंत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। भक्तजनों की संकट से रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बंधन का त्यौहार अनंत चतुर्दशी है। यह व्रत भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की चौदवें दिन मनाया जाता है।
अनंत चतुर्दशी की विशेषता
इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होते है।
अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से धन समृद्धि और विद्या का ज्ञान प्राप्त होता है।
इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
इस दिन अनंत भगवान की पूजा करके संकट से रक्षा करने वाले अनंतसूत्र कलाई में बांधा जाता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा में केले का बहुत महत्व होता है।
दिंनाक/मुहूर्त
इस साल अनंत चतुर्दशी व्रत 23 सितंबर 2018 को मनाया जाएगा। इस पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06:14 से लेकर अगली सुबह 07:17 तक है।
अनंत चतुर्दशी से संबंधित पूजा
इस व्रत में विशेष रूप से भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा की जाती है।
अनंत चतुर्दशी की कथा
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उन्होंने यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत सुंदर किया हुआ था और वह यज्ञ मंडप इतना अद्भुत था कि धरती और जल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं हो पा रही थी। जल में स्थल तथा स्थल में जल की भ्रांति प्रतीत होता था। परन्तु बहुत सावधानी के बाद भी बहुत से व्यक्ति उस अद्भुत मंडप में धोखा खा जाते थे।
एक बार कहीं से टहलते-टहलते दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आ गया और एक तालाब को स्थल समझकर उसमें गिर गया। द्रौपदी ने यह देखकर ' अंधे की संतान अंधी' कह कर उसका मजाक उड़ाया । इस बात पर दुर्योधन चिढ़ गया और यह बात उसके मन में बाण के समान लगी।
दुर्योधन के मन में द्वेष उत्पन्न हुआ और उसने पांडवों से बदला लेने की ठान ली। उसके दिमाग में उस अपमान का बदला लेने के लिए विचार उपजने लगे। उसने बदला लेने के लिए पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा कर उस अपमान का बदला लेने की सोची। दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हरा दिया और पांडवों के पराजित होने पर उन्हें प्रतिज्ञानुसार बारह वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडवों को अनेक कष्टों का सामना करना पडा। एक दिन भगवान कृष्ण जब पांडवों से मिलने आए, तब युधिष्ठिर ने उन्हें अपना दुख सुनाया और दुख दूर करने का उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि तुम विधि-विधान से अनंत भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारा सारे संकट दूर हो जाएंगे। साथ ही तुम्हारा खोया हुआ राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा।