हिन्दू धर्म में श्राद्ध एक ऐसा रिवाज़ है जिसे हर पीढ़ी निभाती है। ऐसा माना जाता है कि यदि परिवारजनों द्वारा पूर्वजों का श्राद्ध नहीं किया जाए तो हमें उनके गुस्से को सहना पड़ता है।
अगर श्राद्ध तर्पण को विधिपूर्वक नहीं किया जाता है तब भी आपको पितरों के कोप का भाजन बनना पड़ता है। आज हम आपको श्राद्ध तर्पण करने की सही विधि आपको बताने जा रहे है।
तर्पण करने की विधि
- घर पर पितृ श्राद्ध करते हुए हाथ जोड़कर अपने मन में भगवान गणेश का ध्यान करें। आप जलांजलि को निर्विघ्न पूर्ण करते हुए उसे पितरों द्वारा स्वीकार करे जाने की प्रार्थना करें।
- आप गहरे तले वाले दो बर्तन लें, बर्तन स्टील या पीतल के हो सकते है।
- इसके बाद एक बर्तन में शुद्ध जल लेकर इसमें थोड़ा सा गंगाजल मिलाएं।
- अब इसमें काले तिल, चावल, दूध, जौ और चंदन डाले और अच्छी तरह मिला लें।
- दक्षिण दिशा की तरह मुंह करके बैठे। हाथ में एक कुशा लेकर उसे दोहरा करें व तिरछा रखते हुए दाएं हाथ में अंगूठे से उसे पकड़ना चाहिए।
- इसके बाद अपने गोत्र का नाम ले और पितरों का आह्वाह्न करते हुए कहे कि, “हे पितर! कृपा करके मेरी ये जलांजलि को स्वीकार करें!”
- यदि तर्पण पिता के लिए कर रहे हों, तो कहना चाहिए, “ मैं अपने पिता (नाम) की तृप्ति के लिए तिल सहित जल अर्पण करता हूं। "तस्मै स्वधा नम:” मंत्र कहे और दूसरे बर्तन में जल अर्पित करे।
- इस विधि द्वारा श्राद्ध करने पर पुरुष पितर के लिए "तस्मै स्वधा नमः" और महिला पितर के लिए "तस्यै स्वधा नम:" मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
- श्राद्ध या तर्पण उसी दिन किया जाना चाहिए जिस दिन पितर की मृत्यु हुई हो।
- अगर तिथि ज्ञात ना हो तो श्राद्ध में आने वाली अमावस्या के दिन पितर के नाम पर तर्पण कर सकते है।
- आप इस तर्पण विधि द्वारा दादा-दादी, नाना-नानी का श्राद्ध-तर्पण भी कर सकते है।