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शिंगणापुर की कहानी
एक बार शिंगणापुर गांव में बांढ आ गई थी । लोगों का कहना है कि एक दैवीय शिला बाढ़ के पानी में बह रही थी । बाढ़ का पानी कम होने पर एक व्यक्ति ने एक पेड़ में अटका यह पत्थर देखा, तो उसने सोचा की इस शिला को बेचकर वो अच्छी कमाई कर सकता है । इसी वजह से उसने इस दैवीय पत्थर को पेड़ से उतारा और उसको तोडने के लिए एक नुकीले चीज से वार किया । उस पत्थर से खून निकलने लगा। यह देख वो डर गया और वापस आकर गांव वालों को इस बारे में बताया ।
सभी गांववाले दोबारा उस स्थान पर पहुंचे जहां वो पत्थर रखा था । सभी उसे देख हैरान रह गए । उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इस चमत्कारी पत्थर का क्या करें । इसलिए उन्होंने गांव वापस लौटकर अगले दिन फिर आने का फैसला किया ।
उसी रात गांव के एक शख्स के सपने में भगवान शनि प्रकट हुए और बोले ‘मैं शनि देव हूं, जो पत्थर तुम्हें आज मिला उसे अपने गांव में लाओ और मुझे स्थापित करो’। अगली सुबह होते ही उस शख्स ने गांव वालों को सारी बात बताई, जिसके बाद सभी उस पत्थर को उठाने के लिए वापस उसी जगह लौटे ।
सभी लोगों ने कोशिश की, किंतु वह पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी ना हिला । थक हार कर गांव वालों ने यह विचार बनाया कि वापस लौट चलते हैं और कल पत्थर को उठाने के एक नए तरीके के साथ आएंगे । उस रात फिर शनि देव उस शख्स के सपने में आए और उसे बताया कि वह पत्थर कैसे उठाया जा सकता है । उन्होंने बताया कि ‘मैं उस स्थान से तभी हिलूंगा जब मुझे उठाने वाले लोग सगे मामा-भांजा के रिश्ते के होंगे’। तभी से ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाएं तो अधिक फायदा होता है ।
इसके बाद शिला को उठाकर एक बड़े से मैदान में सूर्य की रोशनी के तले स्थापित किया गया । शिंगाणपुर मंदिर में प्रवेश करने के बाद कुछ आगे चलकर ही आपको खुला मैदान दिखाई देगा। उस जगह के बीचो-बीच स्थापित हैं शनि देव जी ।
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