स्वाति नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, स्वाति नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु और नक्षत्र देवता वायु है। आकाश मंडल में स्वाति नक्षत्र का 15वां स्थान है। स्वाति का अर्थ “स्वतंत्र” है। अगर आप में संगीत तथा किसी कला के प्रति विशेष आकर्षण है, तो इसका कारण आपका जन्म समय हो सकता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति का जन्म स्वाति नक्षत्र में होता है, तो उनमें कलात्मक अभिरूचि अधिक होती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, स्वाति नक्षत्र पर तुला राशि तथा इस राशि के स्वामी ग्रह शुक्र का भी प्रभाव पड़ता है। नवग्रहों में से शुक्र को सुंदरता, सामाजिकता, भौतिकवाद, कूटनीति और आसक्ति आदि के साथ जोड़ा जाता है। शुक्र की ये विशेषताएं स्वाति नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं।
स्वाति नक्षत्र के अधिपति देवता पवन देव यानि वायु तत्व के देवता हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, तुला राशि को भी वायु तत्व के साथ ही जोड़ा जाता है। इसलिए स्वाति नक्षत्र पर वायु तत्व का प्रभाव बहुत प्रबल रहता है, जिसके कारण वायु की अनेक विशेषताएं जैसे कि लचीला स्वभाव, अस्थिरता, ठोसता का अभाव होना, दिखावा करने की प्रवृति, स्थिति के अनुसार अपने आप को ढाल लेने की क्षमता आदि इस नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं।
इस नक्षत्र पर ज्ञान और कला की देवी सरस्वती का भी प्रभाव होता है। जिन लोगों का जन्म इस नक्षत्र में होता है वह शौकीन और रोमांटिक होते हैं। इस नक्षत्र के व्यक्तियों में एक बड़ी विशेषता होती है कि यह बहुत हंसमुख होते हैं। लोग इनकी ओर जल्दी आकर्षित होते हैं,इसलिए इनकी दोस्ती का दायरा बड़ा होता है। धर्म-कर्म में इनकी रूचि होती है और पारिवारिक जीवन में तालमेल बनाए रखने में सफल होते हैं। ये लोग परिश्रमी होते हैं और परिश्रम के बल पर सफलता हासिल करने का जज़्बा रखते हैं।
इस नक्षत्र के व्यक्ति स्वभाव से बहुत ही स्वाभिमानी और उच्च विचारधारा के होते हैं। न तो इन्हें किसी की संपत्ति में रूचि होती है और न ही अपनी संपत्ति में किसी की हिस्सेदारी को पसंद करते है। ये अपने कार्यों को पूरे मन लगा कर मेहनत और ईमानदारी के साथ करते है।