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पुष्य नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है और नक्षत्र देवता गुरू माने जाते है। आकाश मंडल में पुष्य नक्षत्र का स्थान आठवां है। इस नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना जाता है। पुष्य का अर्थ ‘पोषण प्रदाता’ है, जो इस नक्षत्र के सार को अभिव्यक्त करता है। इस नक्षत्र का प्रतीक एक गाय का थन है, जो पोषण का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस नक्षत्र में जो भी शुभ कार्य किये जाते है, उनके अच्छे परिणाम प्राप्त होते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति उदार, सहनशील और परोपकारी होते हैं। धर्म-कर्म में इनकी गहरी आस्था होती है। लेकिन बचपन में इन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
इन दोनों ग्रहों के प्रभाव के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को जीवन में खूब तरक्की मिलती हैं, लेकिन इसमें इनकी मेहनत और लगन का बड़ा योगदान होता है। बचपन में किये गये संघर्ष के कारण कम उम्र में ही दुनियादारी और जीवन के उद्देश्यों को समझ लेते हैं।
आर्थिक मामलों में इनका हाथ सख्त होता है। धन खर्च करने से पहले काफी सोच-विचार करते हैं। सामाजिक कार्यों में इनकी विशेष रूचि होती है। कमज़ोर और जरूरतमंदों की सहायता में यह सदैव आगे रहते हैं। इनके जीवन में न्याय और सत्य का बड़ा महत्व होता है। इन्हें एक स्थान और एक स्थिति में लंबे समय तक स्थित रहना पसंद नहीं होता है। ये अपने जीवन में खूब मेहनत करते हैं और धन कमाते हैं और साथ ही घूमना-फिरना इन्हें काफी पसंद होता है।
इस नक्षत्र के लोग अध्यात्म में काफी गहरी रूचि रखते हैं और ईश्वर भक्त होते हैं। इनके स्वभाव की एक बड़ी विशेषता है कि ये चंचल मन के होते हैं। गुरूवार और रविवार को होने वाले पुष्य नक्षत्र विशेष रूप से फलदायक होता है, उसी दिन पुष्यामृत योग बनता है।
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