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पुनर्वसुनक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी ग्रह गुरु और नक्षत्र देवता अदिति है। आकाश मंडल में पुनर्वसु सातवां नक्षत्र है। अदिति इस नक्षत्र की इष्टदेवी है। ‘पुनर्र’ का अर्थ आवृत्ति है तथा ‘वसु’ का अर्थ ‘प्रकाश की किरण’ है। इस प्रकार पुनर्वसु का अर्थ ‘पुनः प्रकाश बनने’ से है। इस नक्षत्र का प्रतीक तीरों का तरकश है, जो इच्छाओं या महत्वाकांक्षाओं के प्रति प्रयास करने की क्षमता को दर्शाता है।
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को समृद्धि, शिष्टाचार, सद्भावना और जन कल्याण की भावना रखने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। बृहस्पति की ये विशेषताएं इस नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं, जिसके चलते इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक समृद्ध,शिष्टाचार तथा परोपकारी प्रवृति के ही देखे जाते हैं।
इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के अंदर दैवीय शक्तियाँ होती हैं। पुनर्वसु नक्षत्र के व्यक्ति बेहद मिलनसार, दूसरों से प्रति प्रेमपूर्वक व्यवहार रखने वाले होते हैं। इनका शरीर काफी भारी और याद्दाश्त बहुत मजबूत होती है। इन पर जब कभी कोई मुसीबत आती है,तो कोई अदृश्य शक्ति इनकी सहायता करने अवश्य आती है। ये लोग काफी धनी भी होते हैं। इनके गुप्त शत्रुओं की संख्या अधिक होती है।
इस नक्षत्र के लोगों को समय-समय पर ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इन लोगों को अपने नेक और सरल स्वभाव के कारण समाज में मान-सम्मान और आदर प्राप्त होता हैं। पढ़ने-लिखने में यह काफी होशियार होते हैं। अपनी योग्यता के बल पर सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं।
बृहस्पति के प्रभाव के कारण यह आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार होते हैं, आर्थिक क्षेत्र में यह सफलता प्राप्त करते हैं। प्रबंधन तथा व्यवसाय में भी इन्हें अच्छी सफलता मिलती है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं।
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