मृगशिरा नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष में मूल रूप से 27 नक्षत्र होते है। इन नक्षत्रों की गणना क्रम में मृगशिरा नक्षत्र का स्थान पाँचवाँ है। इस नक्षत्र पर मंगल का प्रभाव रहता है क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी मंगल और देवता चंद्र है। मृगशिरा को मृगशीर्ष नक्षत्र के नाम से भी जाना जाता है।
चन्द्रमा औषधि तथा आरोग्य से जुड़ा है। मृगशिरा का परिचय यदि एक शब्द में देना हो, तो हम इसे ‘अन्वेषण’ या ‘खोज’ कहेंगे। सभी विद्वानों ने इसे जिज्ञासा प्रधान नक्षत्र माना है। इस नक्षत्र का लक्ष्य है अपने ज्ञान और अनुभव का विस्तार करना।
इस नक्षत्र पर मंगल का प्रभाव होने से इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति को तर्क, विवाद तथा मतभेद पैदा करने जैसी विशेषताएं भी प्राप्त होती है, क्योंकि वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह को तर्क, विवाद तथा मतभेदों के साथ जोड़ा जाता है। मृगशिरा नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातक सामान्यतौर पर सुंदर तथा विनोदी स्वभाव के होते हैं। इस नक्षत्र के लोग सामाजिक व्यवाहार में कुशल होते हैं तथा इनका सामाजिक दायरा बड़ा होता है।
इस नक्षत्र वाले लोगों का स्वभाव जिज्ञासा-प्रधान होता हैं। आध्यात्मिक, मानसिक या भावनात्मक स्तर पर नयी खोज और अनुभव पाने के लिए ये हमेशा तैयार रहते हैं। इनका मन और मस्तिष्क निरंतर क्रियाशील रहता है और नए-नए विचार सदैव इनके मन में आते रहते हैं। इस नक्षत्र के व्यक्ति को और लोगों से मिलना तथा उनकी मदद करना बहुत सुख अथवा संतोष देता है।
ये लोग संगीत के शौकीन होते हैं, संगीत के प्रति इनके मन में काफी लगाव होता है। ये स्वयं भी सक्रिय रूप से संगीत में भाग लेते हैं, लेकिन इसे व्यवसायिक तौर पर नहीं अपनाते हैं। इन्हें यात्रओं का भी बहुत शौक होता है, इनकी यात्राओं का मूल उद्देश्य मनोरंजन होता है। कारोबार या व्यवसाय की दृष्टि से यात्रा करना इन्हें विशेष रूप से पसंद नहीं होता है।