मूल नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मूल नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु और नक्षत्र देवता नैऋति है। आकाश मंडल में मूल नक्षत्र का स्थान 19वां है। मूल का अर्थ है “जड़”। वैदिक ज्योतिषियों का कहना हैं, कि मूल नक्षत्र के जातक बहुत रहस्यमयी होते हैं और इनके मन की बात को जान पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मूल नक्षत्र के व्यक्ति किसी भी बात या रहस्य को छिपाने में सक्षम होते हैं। जिस प्रकार किसी पौधे की जड़ अपने आप को भूमि के अंदर छिपाने में सक्षम होती है।
ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों में से छह नक्षत्रों को अशुभ नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है। इन्हीं अशुभ नक्षत्रों में से एक है 'मूल नक्षत्र'। अगर इस नक्षत्र में बच्चे का जन्म होता है, तो उसे गण्डमूल नक्षत्र कहते है और जब एक महीने के अंदर वही नक्षत्र वापस लौटकर आए, तो उस दिन गण्डमूल नक्षत्र की शांति करानी चाहिए। वरना इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।
इस नक्षत्र के लोग अपने कार्यों द्वारा अपने परिवार का नाम और सम्मान बढ़ाते है। यह कोमल हृदय और अस्थिर दिमाग के होते है। ये शांतिप्रिय और सकारत्मक सोच वाले व्यक्ति होते हैं, जो भविष्य की चिंता छोड़कर केवल वर्तमान में जीना पसंद करते हैं। मूल नक्षत्र के व्यक्ति अपने कार्य के प्रति मेहनती और निष्ठावान होते हैं। इस नक्षत्र के लोग अधिकतर कला, लेखन, प्रशासनिक, मेडिकल या हर्बल क्षेत्र में सफल होते हैं।
मूल नक्षत्र के व्यक्ति प्रभावशाली, बुद्धिमान और नेतृत्व के गुणों से भरपूर होते हैं, इसलिए यदि ये लोग सामाजिक या राजनीतिक क्षेत्रों में अपना भाग्य अजमाए, तो शीघ्र ही उच्च पद प्राप्त कर सकते है। इस नक्षत्र के व्यक्ति अध्यात्म में विशेष रुचि होने के कारण धन का लोभ इनके अंदर नहीं होता है। इनका सांसारिक जीवन ख़ुशियों से भरा होता है और सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीने में आनंद मिलता है।