ज्येष्ठा नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध और नक्षत्र देवता इंद्र है। आकाश मंडल में ज्येष्ठा नक्षत्र का 18वां स्थान है। 'ज्येष्ठा' का मतलब होता है 'बड़ा' तथा यह वरिष्ठता को दर्शाता है। ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से छह नक्षत्रों को अशुभ नक्षत्र माना गया है। ज्योतिषशास्त्र की भाषा में इन नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है। इन्हीं अशुभ नक्षत्रों में से एक है 'ज्येष्ठा नक्षत्र'।
इस नक्षत्र में जन्में लोगों के अंदर महान उपलब्धियाँ प्राप्त करने की क्षमता होती है, लेकिन सर्वप्रथम उन्हें अपने आंतरिक संघर्षों से निपटना सीखना होता हैं और अपनी शक्तियों का जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए। ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रतीक एक कुंडल या चक्र है, जो भगवान विष्णु तथा बुध ग्रह की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यह संरक्षण और बौद्धिक क्षमता प्रदान करता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, घर में किसी बच्चे का जन्म इस नक्षत्र में होने पर उसकी मूल शांति करानी चाहिए। इस नक्षत्र में जन्मे बच्चे स्वयं या परिवार के किसी सदस्य के लिए कष्टकारी हो सकते है। मूल शांति होने के बाद नक्षत्र का दोष समाप्त हो जाता है। ऐसे लोग व्यक्तिगत रूप से बहुत ही भाग्यशाली होते है। इस नक्षत्र के जातक बुद्धिमान व्यक्तियों का सम्मान करते हैं तथा सदैव सच्चे लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं।
इस नक्षत्र का स्वामी बुध है, जो इन्हें बुद्धिमान और व्यापारिक योग्यताएं प्रदान करता है इसलिए विशेषतौर पर व्यापार में इन्हें सफलता मिलती है। ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए व्यक्ति किसी विचारधारा में बंधकर रहने की बजाय समय के साथ चलना पसंद करते हैं और मौके और परिस्थितियों का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। इस नक्षत्र के व्यक्ति काफ़ी विचारवान, कुशल और समझदार होते हैं। जो हर किसी के साथ प्यार से पेश आते हैं और अपनी छवि बनाये रखने के लिए हमेशा सतर्क रहते है। ये लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करते है। इनके व्यक्तित्व में एक बड़ी कमी यह होती है, कि जो दिल में होता है वह साफ-साफ कह देते हैं, जिसके कारण इनके दोस्त कम होते है।