धनिष्ठा नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी ग्रह मंगल और नक्षत्र देवता वसु है। आकाश मंडल में धनिष्ठा नक्षत्र का स्थान 23वां है। ‘धनिष्ठा’ का अर्थ है ‘सबसे धनवान’। वैदिक ज्योतिष में आठ वसुओं को इस नक्षत्र के अधिपति देवता माना गया है। वसुओं को भी रुद्रों तथा आदित्यों की भांति देव स्वरुप माना जाता है और वसु श्रेष्ठता, सुरक्षा, धन-धान्य तथा ऐसी वस्तुओं के ही दूसरे नाम हैं।
धनिष्ठा नक्षत्र में इन आठ वसुओं की अपनी एक अलग विशेषताएं होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप धनिष्ठा नक्षत्र में व्यावहारिक कौशल, ऊर्जा से भरपूर और ध्रुव की भांति दृढ़ स्वभाव आदि विशेषताएं पायी जाती हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में भगवान शिव की नृत्य कला, संगीत कला और कई अन्य विशेषताएं प्रदर्शित होती हैं।
इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति सभी गुणों से समृद्ध होकर जीवन में सम्मान और प्रतिष्ठा पाते है। ये लोग स्वभाव से बहुत ही कोमल हृदय और संवेदनशील होते हैं, साथ ही दानी एवं अध्यात्मिक होते हैं। परन्तु अपनी इच्छाओं के विरुद्ध जाना इनको पसंद नहीं होता है। इनका व्यवहार अपने प्रियजनों के प्रति बहुत सुरक्षात्मक होता है।
इस नक्षत्र के व्यक्ति ज्ञानी होते हैं, जो किसी भी उम्र में ज्ञान अर्जित करने में संकोच नहीं करते है। अपने इसी गुण के कारण ये लोग किसी भी कार्य को कुशलता के साथ पूरा करने में सक्षम होते हैं। ये लोग संवेदनशील होते हैं, लेकिन कमज़ोर नहीं। इस नक्षत्र के जातक मानवता में विश्वास रखते हैं, जो दूसरों को कड़वे वचन नहीं बोलते है। धनिष्ठा नक्षत्र के व्यक्ति कभी विरोध की भावना नहीं रखते, लेकिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को भी कभी नहीं भूलते है। ये लोग सही समय आने का इंतजार करते है और तब अपने तरीके से बदला लेते हैं।
इस नक्षत्र के जातक अत्यधिक ज्ञान और प्रखर बुद्धि के कारण अपने जीवन में नयी ऊचाईयों को छूते हैं। ये लोग किसी भी बात को छुपाने में सक्षम होते हैं। यह अपने भेद जल्दी से किसी को नहीं बताते है। यह अपने कार्य के प्रति बेहद सजग और वफादार होते हैं।