अश्लेषा नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, अश्लेषा नक्षत्र का स्वामी बुध ग्रह है। इस नक्षत्र के अधिपति देव नाग हैं जो ज्ञान से संबंधित हैं। आकाश मंडल में अश्लेषा नक्षत्र नौवां नक्षत्र है। अश्लेषा नक्षत्र पांच तारों का एक समूह होता है, यह दिखने में चक्र के समान प्रतीत होता है। सर्प कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो अश्लेषा नक्षत्र का वास्तविक सार है। ज़हर, छल, सहजज्ञान, अंतर्दृष्टि आदि सभी गुण अश्लेषा नक्षत्र में समाहित हैं। यह नक्षत्र मौलिक प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है तथा पूर्वजन्म और आनुवंशिक विरासत से भी संबंधित है। अश्लेषा नक्षत्र की उर्जा को समझना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यह रहस्यमय तथा संदिग्ध है।
सर्पों को बहुत ही रहस्यमयी जीव माना जाता है और यही सबसे प्रमुख कारण है, जिसके चलते अधिकतर लोग सर्पों से भयभीत रहते हैं। सर्पों को भ्रम पैदा करने की कला में निपुण, सम्मोहन पैदा करने की कला का ज्ञान रखने वाले तथा विषैले जीवों के रूप में जाना जाता है। सर्पों की ये विशेषताएं अश्लेषा नक्षत्र के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं।
इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति सफल व्यापारी, चतुर वकील, भाषण कला में निपुण होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ईमानदार होते हैं और साथ ही मौक़ापरस्त भी होते हैं। दूसरों पर ये आसानी से विश्वास नहीं करते है। यह स्वभाव मे हठीले तथा जिददी होते हैं और अपनी जिद के आगे किसी की भी नहीं सुनते। इस जातक में नाग देवता का प्रभाव अधिक प्रतीत होता है।
अश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली कन्या अपने स्वभाव से सभी का मन मोह लेती है। यह संस्कारी और सभी का सम्मान करने वाली होती है। इस नक्षत्र मे जन्मी कन्या बहुत भाग्यशाली होती हैं, यह जिस घर में जाती है। वहाँ लक्ष्मी का वास होता है और वह घर धन धान्य से भर जाता है।