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सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 की सम्पूर्ण जानकारी
इस वर्ष का तीसरा सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 को पड़ रहा है, पिछले सूर्य ग्रहण (13 जुलाई 2018 ) की भांति यह ग्रहण भी आंशिक ग्रहण (अर्धाल्प ग्रहण) होगा, जो की 11 अगस्त 2018 दिन शनिवार को दिखाई देगा।
यह ग्रहण भी भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशो में नहीं दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 का समय (UTC समय के अनुसार)
भारतीय समय के अनुसार इस सूर्य ग्रहण का समय
स्थान जहाँ पर 11 अगस्त 2018 का सूर्य ग्रहण दिखाई देगा:
यह ग्रहण ग्रीनलैंड में, आइसलैंड में, कनाडा में, नॉर्वे में, फ़िनलैंड में, रूस में, दक्षिणी कोरिया में, उत्तरी कोरिया में, मंगोलिया और चीन के कुछ क्षेत्रो में दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 का सूतक समय
भारत में यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा इसलिए सूतक समय लागु नहीं होगा, सूतक समय बच्चो और वृद्धो के लिए भी लागु नहीं होगा।
जिन स्थानों पर सूर्य ग्रहण दिखाई देगा वही पर सूतक समय लागु होगा।
जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आता है, तो चंद्रमा पृथ्वी पर पडने वाली सूर्य के प्रकाश को रोकता है और साथ ही सूर्य पर अपनी छाया बनाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहते है। हिंदू धर्म में जब सूर्य पर ग्रहण लगता है, तो उस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। ग्रहण दो प्रकार के होते है, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण। सम्पूर्ण सूर्य ग्रहण में पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है और इस दिन पृथ्वी से सूर्य दिखाई नही देता है।
सूर्य ग्रहण की विशेषता
जब सूर्य ग्रहण होता है, तो मंदिरों के कपाट बंद रहते है।
सूर्य ग्रहण में देवी-देवताओं का दर्शन करना अशुभ माना जाता है।
इस ग्रहण में गर्भवती स्त्रियों, वृद्धों को दवाई आदि देना भी वर्जित माना जाता है।
ग्रहण में किसी भी मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
गर्भवती महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, सब्ज़ी काटने और छीलने जैसे कार्य भी नहीं करने चाहिए। गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए अशुभ होता है।
सूर्य मंत्र
सूर्य ग्रहण में इस मंत्र का जाप करना शुभ होता है।
“ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्”
दिंनाक/समय
इस साल दूसरा सूर्य ग्रहण 13 जुलाई 2018 को होगा और इस सूर्य ग्रहण का आरम्भ सुबह के 07:18 से होगा और इसका अंत 09:43 पर होगा।
सूर्य ग्रहण की कथा
धार्मिक वेदों, शास्त्रों और पुराणों में सूर्य ग्रहण का कारण राहु-केतु को माना गया है। हिंदू धर्म की प्रचलित कथा के अनुसार समुद्र मंथन के वक्त जब देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए युद्ध हो रहा था। तब इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। अमृत का वितरण करने के लिए भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बैठा दिया। लेकिन असुरों का सेनापति राहु छल से देवताओं के बीच में आकर बैठ गया। चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया।
तभी इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दे दी। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु ने तब तक अमृत पान कर लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना जाता है। इसी कारण से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हुए, उन पर ग्रहण लगाते है।
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