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रक्षा बंधन
पूरे भारत वर्ष में रक्षाबंधन को महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और उसकी लम्बी आयु की कामना करती है। साथ ही भाई भी अपनी बहन को उसकी सुरक्षा का वचन देता है। इस पर्व को बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है और साथ ही यह त्यौहार भाई- बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है।
रक्षाबंधन की विशेषता
रक्षाबंधन का त्यौहार विशेष रूप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है।
इस दिन बहन अपने भाई की लम्बी आयु के लिए उपवास रखती है।
यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।
इस दिन जो भी बहन श्रद्धा और विश्वास के साथ राखी को बांधती है और राखी बंधवाने वाला व्यक्ति दायित्वों को स्वीकारता है और वह इस रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करते है।
यह पर्व केवल भाई-बहन के स्नेह के साथ-साथ सामाजिक संबंधो को भी मजबूत करता है।
रक्षाबंधन का मंत्र
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल मा चल|
दिंनाक/मुहुर्त
इस साल रक्षाबंधन 26 अगस्त 2018 को मनाई जाएगी और इसका शुभ मुहुर्त सुबह के 06:05 से लेकर 12:55 तक का है।
रक्षाबंधन की कथा
पहली कथा
मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब पता चला कि बहादुरशाह मेवाड़ पर हमला करने वाला है, तो वह घबरा गई। रानी कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में असमर्थ थी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता नहीं निकलता देख, रानी ने हुमायूं को राखी भेजते हुए निवेदन किया कि उनकी और उनके राज्य की रक्षा करे। हुमायूं ने राखी पाते ही रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा देते हुए सुरक्षा का वचन दिया। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्घ, मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्णावती और उसके राज्य की रक्षा की।
दूसरी कथा
यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत काल में जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया था। तब सुदर्शन चक्र श्रीकृष्ण के पास वापस आया तो उस समय श्रीकृष्ण की उंगली कट गई और भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी ने अपनी पल्लू का किनारा फाड़ कर कृष्णजी की उंगली में बांध दिया। जिसको लेकर कृष्णजी ने द्रौपदी से उनकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दुशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करते समय श्रीकृष्ण ने उनकी लाज रखी। उसी समय से रक्षाबंधन धूम-धाम से मनाने की रीति चली आ रही है।
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