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Varalaksmi Vrat Puja 2018, Puja Muhurat and Pujan Vidhi of VaraLakshmi | Shivology
What is Varalakshmi Vrat? Varalaxmi Vrat 2018 om swami gagan

वरलक्ष्मी व्रत क्या है? वरलक्ष्मी व्रत 2018


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वरलक्ष्मी व्रत

वरलक्ष्मी व्रत सावन के महीने में शुक्ल पक्ष की दसवें दिन मनाया जाता है। यह व्रत राखी और सावन पूर्णिमा से पहले आता है। भगवान विष्णु की पत्नी मां लक्ष्मी को वरलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। मां लक्ष्मी का एक स्वरूप वरलक्ष्मी रूप भी है। ऐसा माना जाता है कि देवी वरलक्ष्मी का रूप वरदान देने के लिए होता है। इसीलिए इन्हें वर और लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। देवी वरलक्ष्मी का रंग दूधिया महासागर रूप में वर्ण किया है और यह रंगीन कपडों में सजी होती है। इस दिन देवी वरलक्ष्मी का व्रत रखकर आप उनसे अपने सुखी जीवन की प्रार्थना कर सकते है।

 

वरलक्ष्मी व्रत की विशेषता

इस व्रत को करने से शादीशुदा जोडों को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है।

मां वरलक्ष्मी की पूजा और व्रत करने से धन, सुख, सम्पति, वैभव की प्राप्ति होती है।

वरलक्ष्मी व्रत करने से अष्टलक्ष्मी की पूजा के बराबर फल प्राप्त होता है।

मां वरलक्ष्मी का व्रत करने से मां अपने भक्तों की सारी इच्छाओं को पूरा करती है।

इनका व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती है।

इस दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए पूरे दिन उपवास रखती है।

मां वरलक्ष्मी व्रत को पति और पत्नी दोनों करे तो इस व्रत का महत्व बहुत अधिक बढ जाता है।

 

दिंनाक/मुहूर्त

इस साल यह व्रत 24 अगस्त 2018 को मनाया जाएगा।

सिंह लग्न में पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07:00 बजे से लेकर 08:49 बजे तक है।

वृश्चिक लग्न में पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:34 बजे से लेकर 03:54 बजे तक है।

कुंभ लग्न में पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07:36 बजे से लेकर 08:59 बजे तक है।

वृषभ लग्न में पूजा का शुभ मुहूर्त अर्धरात्रि 11:50 बजे से लेकर 12:44 बजे तक है।

वरलक्ष्मी व्रत सम्बंधी पूजा

इस व्रत में मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

 

वरलक्ष्मी व्रत की कथा

प्राचीन कथा के अनुसार एक बार मगध राज्य में कुण्डी नामक एक नगर था। इस कुंडी नगर का निर्माण स्वर्ग से हुआ था। इस नगर में एक ब्राह्मणी नारी रहती थी, उसका नाम चारुमति था। वह अपने परिवार के साथ रहती थी। चारुमति एक कर्तव्यनिष्ठ नारी थी, जो अपने सास, ससुर और पति की सेवा करती थी। साथ ही मां लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना कर एक आदर्श नारी का जीवन व्यतीत कर रही थी।

एक रात चारुमति को मां लक्ष्मी का स्वप्न आया। मां लक्ष्मी ने स्वप्न में आकर बोली, चारुमति तुम हर शुक्रवार को मेरा निमित्त रूप से वरलक्ष्मी व्रत को किया करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।

अगले सुबह चारुमति ने मां लक्ष्मी द्वारा बताये गए वरलक्ष्मी व्रत को समाज की अन्य नारियों के साथ विधि-विधान के साथ शुरू किया। पूजा के संपन्न होने पर सभी स्त्रियां कलश की परिक्रमा करने लगीं, परिक्रमा करते समय सभी स्त्रियों के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए।

साथ ही उनके घर भी स्वर्ण के बन गए और उनके यहां घोड़े, हाथी, गाय आदि पशु भी आ गए। सभी नारियां चारुमति को धन्यवाद देने लगी। क्योंकि चारुमति ने ही उन सबको इस व्रत और विधि के बारे में बताया था। कालांतर में यह कथा भगवान शिव जी ने माता पार्वती को कही थी। इस व्रत को सुनने मात्र से ही लक्ष्मी जी की कृपा-दृष्ट प्राप्त होती है।

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