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भारत में भगवान विश्वकर्मा की पूजा धूमधाम से की जाती है। ऐसे माना जाता है कि,जो भी भगवान विश्वकर्मा का नाम लेता हैं उसकी हर मुश्किल दूर हो जाती है।
कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है। कई लोग विश्वकर्मा पूजा भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन करते है, तो कई लोग विश्वकर्मा पूजा दिपावली के दूसरे दिन मनाते है। विश्वकर्माजयंती को लोग बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है।
विश्वकर्मा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु जगह-जगह घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। वही पत्नी भी संतान ना होने के कारण चिंतित रहती थी।
संतान प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहाँ जाते थे, लेकिन यह इच्छा उनकी पूरी ना हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा, तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनो।
इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की। जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र की प्राप्ति हुई और वह दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।
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