Vat Savitri Vrat 2018, Savitri Puja Muhurat and Pujan Vidhi | Shivology


Vat Savitri Vrat 2018

वट सावित्री व्रत 2018

Festivals 2018

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हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत महत्व है। यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस साल वट सावित्री व्रत 15 मई को मनाया जाएगा। सुहागन महिलाएं सौभाग्य और संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती है। साथ ही अपने पति की लंबी आयु और संतान के कुशल भविष्य के लिए वट सावित्री व्रत रखती है। इस व्रत में सभी सुहागन स्त्रियां वट वृक्ष अर्थात् बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करती है इसलिए इसे वरदगाई भी कहते है।

 

वट सावित्री पूजा की विशेषता

वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष यानि बरगद के  पेड़ का खास महत्व होता है।

शास्त्रों और पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा, व्रत कथा सुनने और कहने से हर मनोकामना पूरी होती है।

इस पेड़ में काफी शाखाएं लटकी हुई होती है, जिन्हें सावित्री देवी का रूप माना जाता है।

वट वृक्ष की विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षयवट भी कहा जाता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि बड़े अमावस्या के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य, धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

सावित्री ने इस दिन यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी।

 

दिनांक/मुहुर्त

वट सावित्री व्रत इस साल 15 मई 2018 को मनाया जाएगा।

इस व्रत का शुभ मुहुर्त 14 मई 2018, को सोमवार रात्रि 19: 46 पर आरम्भ होगा और इसका अंत 15 मई 2018 को मंगलवार रात्रि 17:17 पर होगा।

 

वट सावित्री व्रत की कथा

भारतीय संस्कृति के अनुसार वट वृक्ष की पूजा और सावित्री-सत्यवान की कथा के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। सत्यवान और सावित्री के विवाह के कुछ समय पश्चात ही सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आ गया। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन था, उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल गई थी। अचानक सत्यवान की तबियत खराब हो गई। सावित्री ने देखा कि सामने से एक भयानक पुरूष आ रहा है और जिसके हाथ में पाश है।   

सावित्री ने उनसे पूछा कि आप कौन है, तो उन्होंने कहा मैं यमराज हूं। उसके बाद यमराज ने सत्यवान के प्राणो का हरण किया और दक्षिण दिशा की ओर चल पडे। सावित्री बोली, मेरे पतिदेव जहां जायेंगे, मैं भी वही जाऊंगी। तब यमराज ने उसे कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता हूं। तुम पतिव्रता स्त्री होने के कारण मुझसे मनचाहा वर मांग लो।

फिर सावित्री ने वर में अपने ससुर की आंखे मांगी, यमराज ने कहा तथास्तु। उसके बाद भी सावित्री उनके पीछे-पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे पुनःसमझाते हुए दूसरा वर मांगने को कहा। उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे ससुर को उनका पूरा राज्य वापस मिल जाए। उसके बाद सावित्री ने फिर वही सब दोहराया। तब यमराज ने तीसरा वर मांगने को कहा, जिसमे सावित्री ने वर मांगा की, मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं है उन्हें सौ पुत्र हों, यमराज ने कहा तथास्तु।

सावित्री फिर उनके पीछे-पीछे चलने लगी। यमराज ने कहा सावित्री तुम लौट जाओ, चाहो तो मुझ से कोई भी वर मांग लो। तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हो, यमराज ने कहा तथास्तु। यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़ते हुए आगे बढऩे लगे। सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस जाओ, तब सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं। आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आशीर्वाद दिया है।

तब थक हार के यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस लौटा दिए और उसे जीवित कर दिए। उसके बाद सावित्री जब सत्यवान के शव के पास पहुंची तो कुछ ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई और सत्यवान जीवित हो गया। उसके बाद सावित्री ने अपने पति को पानी पिलाकर और स्वयं पानी पीकर अपना व्रत को तोड़ा।



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