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तुलसी विवाह
तुलसी विवाह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को संपन्न की जाती है। इस दिन को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु रूपी शालिग्राम का विवाह तुलसी से होता है, साथ ही इस दिन भगवान विष्णु चार महीने तक सोने के बाद जागते है। इस दिन तुलसी पूजा और तुलसी विवाह करने का बडा ही महत्व है। तुलसी विवाह को लोग बहुत ही धूमधाम और श्रद्धा भाव के साथ मनाते है। शास्त्रों के अनुसार, तुलसी जी को भगवान विष्णु का प्रिय कहा गया है। विष्णु जी की पूजा के लिए तुलसी दल अर्थात् तुलसी के पत्ते होना जरूरी होता है। बिना तुलसी दल के भगवान विष्णु की पूजा करना अधूरा माना जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
अगर कोई तुलसी विवाह करता है, तो उस व्यक्ति को कन्यदान के बराबर फल मिलता है।
तुलसी विवाह संपन्न करवाने से व्यक्ति के सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है।
जो लोग तुलसी विवाह करवाते है, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
तुलसी हर घर में होती है, तुलसी की सेवा और पूजा करना महान पुण्य माना जाता है।
जो मनुष्य तुलसी विवाह करवाता है, उसे इस धरती के सारे सुख प्राप्त होते है।
जिस घर में तुलसी जी की पूजा होती है, उस घर में कभी भी धन –धान्य की कमी नहीं होती है।
यदि किसी घर में लड़के या लड़की की शादी में अड़चन आ रही हो, तो उन्हें जरूर तुलसी विवाह करवाना चाहिए। ऐसा करने से विवाह की सारी अड़चनें दूर हो जाती है।
तुलसी विवाह का दिन
इस साल तुलसी विवाह 19 नवंबर 2018 के दिन किया जाएगा।
तुलसी विवाह की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नामक एक राक्षस था। उसने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था और वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से उसके पति को सुरक्षा कवच प्रदान हुआ। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया।
उन्होंने जालधंर का रूप धारण करके छल से वृंदा को स्पर्श किया। वही वृंदा का पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था। वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया। जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे। यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई, जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह श्राप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग करने के अपराध में तुम ह्दयहीन पत्थर बन जाओं। तब भगवान विष्णु बोले, हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह कराएगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा। बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाएगी। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।
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