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गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी का पर्व हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है। भगवान गणेश के जन्मदिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार लोग बहुत ही धूम-धाम और हर्षोउल्लास के साथ मनाते है। यह पर्व देश के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व को बहुत ही बडे पैमाने पर और श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश के कई नाम है जैसे विनायक, गजानन, गणेश, लंबोदर, एकदंत, वक्रतुंड, गौरीसुत, गणपति आदि नामों से जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी की विशेषता
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को घर लाकर उनकी स्थापना करके पूजा अर्चना करते है। ऐसा करने से गणेशजी प्रसन्न होकर आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण करेगें।
भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश को लोग अपने घर पर 10 दिन के लिए स्थापित करते है और 10वें दिन गणेशजी की मूर्ति का विर्सजन करते है।
किसी भी कार्य को करने से पहले गणेशजी की पूजा करना शुभ माना जाता है।
गणेशजी की पूजा करने से विद्या, बुद्धि और रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही विघ्नों का भी नाश होता है।
भगवान गणेश को मोदक बहुत प्रिय है। इसलिए इनकी पूजा करते वक्त मोदक का प्रसाद चढाया जाता है।
गणेशजी का वाहन मूषक है और इन्हें लिखने का विशेषज्ञ माना जाता है।
भगवान गणेशजी का मंत्र
“ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।”
दिंनाक/मुहूर्त
इस साल गणेश चतुर्थी का त्यौहार 12 सितंबर 2018 से शुरू हो रहा है और इसका समापन 23 सितंबर 2018 को होगा।
गणेशजी की स्थापना करने का शुभ मुहूर्त 12:09 से 02:37 तक है।
गणेश चतुर्थी की कथा
गणेश चतुर्थी से जुडी एक कथा शिवपुराण में विख्यात है। एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थी। तभी मां पार्वती ने अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न किया और उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि मैं स्नान करने जा रही हूं, तो तुम किसी को भी भीतर मत आने देना।
कुछ समय पश्चात् वहां पर शिवजी आ गए और शिवजी जब भीतर प्रवेश के लिए गए, तब बालक ने उन्हें रोक दिया और कहा कि मेरी मां का आदेश है कि कोई भी भीतर ना आए। इस बात पर शिवजी क्रोधित हो गए और शिवजी के गणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया। लेकिन इस संग्राम में उन्हें कोई पराजित नहीं कर पाया। अंततः भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माता पार्वती दुखी हो उठीं और उन्होंने संसार का विनाश करने की ठान ली।
इस बात से भयभीत होकर सभी देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश के अनुसार विष्णु जी उत्तर दिशा से सबसे पहले मिले हाथी का सिर काटकर ले आए। भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे फिर से जीवित कर दिया।
माता पार्वती ने खुश होकर अपने पुत्र के गजमुख रुप को अपने हृदय से लगा लिया और सभी देवी-देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद दिया। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को देवताओं के अध्यक्ष के रूप में घोषित करके, सबसे पहले पूजे जाने का वरदान दिया।
भगवान शंकर ने बालक से कहा कि, हे गजानन, तुम विघ्न-बांधाओं का नाश करने में तुम्हारा नाम सर्वप्रथम होगा। हे गणेश तुम भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुए हो। इस तिथि में व्रत करने वाले मनुष्यों की सभी विघ्नों का नाश होगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
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