नरक चतुर्दशी का त्यौहार हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशीतिथि को मनाया जाता है। इस चतुर्दशी तिथि को छोटी दीपावाली के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करके यम तर्पण तथा शाम के समय दीप दान करने का बहुतमहत्व होता है।
नरक चतुर्दशी का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, नरकासुर ने सोलह हजार कन्याओं को बंदी बनाकर रखा हुआ था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था।
नरकासुर का वध करके श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया था। इन कन्याओं ने श्रीकृष्ण से कहा कि हमें यह समाज स्वीकार नहींकरेगा, अतः आप ही कोई उपाय बताए।
समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा के सहयोग से श्रीकृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लियाथा।
नरकासुर का वध और सोलह हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीपदान करने से व्यक्ति नरककी यातनाओं और अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। इसीकारण नरक चतु्र्दशी के दिनदीपदान और पूजा करने का महत्व है।
- भगवन श्रीहरि ने राजा बलि को वरदान दिया था कि, नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर और व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होगा।इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत,पूजन और दीपदान का प्रचलन चला आ रहा है।
- नरक चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तेल, चन्दन, उबटन लगाकर पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर स्नान करना चाहिए।
- स्नान करने के बाद विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने से पाप का नाश होता है, ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है।