हिंदू धर्म में कार्तिक का महीना बहुत शुभ माना जाता है और इस महीने में कई त्यौहार होते है, उसी में से एक त्यौहार है गोवर्धन पूजा।
दीपावली के अगले दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। हिंदुओं में गोवर्धन पूजा का त्यौहार इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र को पराजित किया था।
गोवर्धन पूजा की कथा
भगवान श्रीकृष्ण का लालन-पालन गोकुल में नन्द बाबा के घर हुआ था। सभी ग्वालों के बीच रहकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बालपन में कई लीला रची, उन्हीं में से एक कथा इंद्र देव की है।
देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों परबहुत अभिमान हो गया था और भगवान श्रीकृष्ण नेइंद्र के अहंकार को चूर करने के लिए एक लीला रची थी।
इस कथा के अनुसार एक दिन गोकुल में लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और साथ ही हर्षोल्लास के साथ गीत गा रहे थे।
यह सब देखकर भगवान कृष्ण ने यशोदा माता से पूछा कि, आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण के सवाल पर माँ यशोदा ने कहा कि, हम देवराज इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं।
माँ यशोदा के जवाब पर श्रीकृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। तब यशोदा माँ ने कहा कि, हम इंद्र देव की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करते है।
जिससे वह अच्छी बारिश करें और अन्न की पैदावार अच्छी हो तथा हमारी गायों को भी चारा मिलता है। माता यशोदा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि, अगर ऐसा है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि हमारी गाय वहीं चरने जाती है, वहाँ लगे पेड़-पौधों की वजह से बारिश होती है।
श्रीकृष्ण की बात सुनकर सभी गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया। यह देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और इसे अपना अपमान समझकर गोकुल वासियों को सबक सिखानेके लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी।
इस प्रलयकारी वर्षा को देखकर सभी गोकुलवासी घबरा गए। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊँगली पर उठा लिया और समस्त गोकुल वासियों ने पर्वत के नीचे शरण ली।
यह देखकर इंद्र ने बारिश ओर तेज कर दी,लगातारसात दिन तक मूसलाधार बारिश के बावजूद गोकुल वासियों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा। इसके बाद इंद्र को अहसास हुआ कि मुझसेमुकाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्यनहीं हो सकता है।
ब्रह्मा जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर भगवना विष्णु ने कृष्ण रूप में जन्म लिया है और तुम उनसे ही युद्ध कर रहे हो।
यह बात जानकर इंद्र को पछतावा हुआतथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगीऔर स्वयं इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।