बाँके बिहारी मंदिर
बाँके बिहारी मंदिर मथुरा के वृन्दावन में स्थित है। भगवान श्रीकृष्ण को ही बाँके बिहारी के नाम से जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते है ? इसके पीछे कृष्णजी की रोचक लीलाओं का असर है। इनके नटखट अंदाज के कारण ही इन्हें बाँके बिहारी का नाम दिया गया है। बाँके शब्द का अर्थ है तीन जगह से मुडा हुआ और बिहारी का अर्थ है श्रेष्ठ उपभोक्ता। श्री बाँके बिहारी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति त्रिभंग अवस्था में खडी है।
मंदिर के रोचक तथ्य :-
- मथुरा में स्थित बांके बिहारी मंदिर को आदरणीय स्वामी हरिदासजी द्वारा स्थापित किया गया था। स्वामी हरिदास जी प्राचीनकाल के मशहूर गायक तानसेन के गुरु थे।
- बाँके बिहारी मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है, वह मूर्ति किसी ने बनाई नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी जी ने स्वयं निधिवन में श्रीकृष्ण का स्मरण करके इस मूर्ति को अपने सामने पाया था।
- बिहारी जी की मूर्ति का विग्रह रूप निधिवन से प्राप्त हुआ था।
- बाँके बिहारी मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति एक बालक के रूप में विराजमान है। बालक प्रेम के वश में होते है, इसलिए बाँके बिहारी जी जहाँ प्रेम और करूणा देखते है वही चल देते है।
- यही कारण है की इस मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति को पर्दे में रखा जाता है। जिससे भक्त बिहारी जी से ज्यादा देर तक आँखे ना मिला सके।
- मंदिर के पुजारी श्रीकृष्ण को पर्दे में इसलिए रखते है क्योंकि बिहारी जी भक्तों की भक्ति में और उनकी व्यथा सुनकर करूणा से भर जाते है। अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ चल पडते है।
- एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी बाँके बिहारी जी के दर्शन करने के लिए आई और वह इनकी भक्ति में डूब गई। वह घर वापस नहीं जाना चाहती थी।
- जब उस राजकुमारी के घर वाले उसे जबरन वापस ले जाने लगे, तो उसकी भक्ति में विवश होकर श्रीकृष्ण भी उसके साथ चल दिये।